योग,विज्ञान के साथ-साथ धर्म भी है | Yoga is science as well as religion.

योग(Yoga) एक ऐसा मार्ग है जो विज्ञान(Science) और धर्म(religion) के बीच से निकलता है और दोनों से संतुलन बनाकर चलता है। योग धर्म और विज्ञान(yoga,religion & science) दोनों ही कार्य अच्छे से करता है, इसलिए योग, विज्ञान के साथ-साथ धर्म भी है। (Yoga is science as well as religion.)

yoga, science & religion


Also Read: धर्म क्या है | What is religion


धर्म सिखाता विश्‍वास और योग सिखाता खोज

धर्म हमें विश्‍वास, आस्था, प्रार्थना और नियम सिखता है, लेकिन योग से हम तन और मन की सेहत के साथ ही अभ्यास, अनुभव, संदेह, जागरण और प्रयोग के महत्व को जानाते है। जो व्यक्ति कट्टर धार्मिक है उसे योग समझ में नहीं आएगा, क्योंकि योग कभी भी आपको बंधे बंधाए उत्तर नहीं देता बल्कि इससे आपको प्रमाणिक उत्तर मिलता है। योग विशुद्ध गणिक और विज्ञान है। योग विश्वास करना नहीं सिखाता और नहीं संदेह करना और ना ही संशय करना । विश्‍वास तथा संदेह के बीच की अवस्था संशय होती है, योग जिसके खिलाफ है। योग कहता है, आपमें जानने की क्षमता है, आप ब्रमांड में कुछ भी जान सकते है बस इसके लिए अपनी शाक्ति का उपयोग करो।

योग न ईश्वरवादी और न अनिश्वरवादी

धर्म के सत्य, मनोविज्ञान और विज्ञान का सुव्यवस्थित रूप होता है योग। योग की धारणा ना ही ईश्‍वर के प्रति स्वयं में भय उत्पन्न करती है और ना ही वह ईश्‍वर से प्रेम करने को कहती है। योग सिर्फ आपको ईश्‍वर है या नहीं इसे जानने या खोजने के लिए प्रेरित करती है। योग हमेशा से ईश्वरवाद और अनिश्वरवाद की तार्किक बहस अलग-थलग है। योग इसे विकल्प ज्ञान मानता है, अर्थात मिथ्याज्ञान। किंतु यदि किसी काल्पनिक ईश्वर की प्रार्थना करने से मन और शरीर में शांति मिलती है तो इसमें कोई  बुराई नहीं है। इसीलिए योग में ईश्‍वरप्राणिधान नामक नियम  एक अंग है।


Also Read: खुद को इस तरह से रखें पॉजिटिव


योग है समस्याओं का समाधान

योग आपके जीवन को स्वस्थ और शांतिपूर्ण बनाए रखने का एक सबसे सरल मार्ग है। यदि आप स्वस्थ और शांतिपूर्ण रहेंगे तो आप जीवन में धर्म को समझेगें और धर्म के नाम पर हो रही बेवकूफियों से बचे रहेगें। योग एक ऐसा मार्ग है जो विज्ञान और धर्म के बीच से निकलता है और दोनों से संतुलन बनाकर चलता है। योग के लिए महत्वपूर्ण है मनुष्य और मोक्ष। मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखना विज्ञान और मनोविज्ञान का कार्य है और मनुष्य के लिए मोक्ष का मार्ग बताना धर्म का कार्य है किंतु योग यह दोनों ही कार्य अच्छे से करता है इसलिए योग विज्ञान के साथ-साथ धर्म भी है।

yoga, science & religion

योगश्चित्तवृत्तिनिरोध

जिनके मस्तिष्क में द्वंद्व है, वह हमेशा चिंता, भय और संशय में ही ‍जीते रहते हैं। उन्हें जीवन एक संघर्ष ही नजर आता है, आनंद नहीं। योग से समस्त तरह की चित्तवृत्तियों का निरोध होता है- योगश्चित्तवृत्तिनिरोध- चित्त अर्थात बुद्धि, अहंकार और मन नामक वृत्ति के क्रियाकलापों से बनने वाला अंत:करण। चाहें तो इसे अचेतन मन कह सकते हैं, लेकिन यह अंत:करण इससे भी सूक्ष्म माना गया है।

दुनिया के सारे धर्म इस चित्त पर ही कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तरह-तरह के नियम, क्रिया कांड, ग्रह-नक्षत्र और ईश्वर के प्रति भय को उत्पन्न कर लोगों को अपने-अपने धर्म से जकड़े रखा है। पतंजलि कहते हैं कि इस चित्त को ही खत्म करो। पतंजलि कहते हैं कि शुरुआत शरीर के तल से ही करनी होगी। शरीर को बदलो मन बदलेगा। मन बदलेगा तो बुद्धि बदलेगी। बुद्धि बदलेगी तो आत्मा स्वत: ही स्वस्थ हो जाएगी। आत्मा तो स्वस्थ है ही। एक स्वस्थ आत्मचित्त ही समाधि को उपलब्ध हो सकता है।

अत: शरीर और मन का दमन नहीं करना है, बल्कि इसका रूपांतर करना है। इसके रूपांतर से ही जीवन में बदलाव आएगा। यदि आपको लगता है कि मैं अपनी आदतों को नहीं छोड़ पा रहा हूं, जिनसे कि मैं परेशान हूं तो चिंता मत करो। उन आदतों में एक ‘योग’ को और शामिल कर लो और लगे रहो। आप निश्चित बदलाव आयेगा।


Also Read: कभी कम तो कभी अधिक रहता है, जीवन कब एक जैसा रहता है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *