मंगलेश डबराल की कविता संगतकार कविता का सार तथा मूल पाठ, सप्रसंग व्याख्या और कवि परिचय| Class-X, Chapter-6 (CBSE/NCERT)

मंगलेश डबराल की कविता संगतकार कविता का सार तथा मूल पाठ, सप्रसंग व्याख्या और कवि परिचय| Class-X, Chapter-6 (CBSE/NCERT)

कवि मंगलेश डबराल का जीवन परिचय

जीवन परिचय

मंगलेश डबराल का जन्म टिहरी गढ़वाल (उत्तराखण्ड) के काफलपानी गाँव में सन् 1948 में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में प्राप्त की। दिल्ली आकर ये पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े और इन्होंने हिन्दी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम किया तथा भारत भवन, भोपाल से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक सम्मादक के पद पर आसीन रहे।

डबराल ने इलाहाबाद और लखनऊ में छपने वाले अमृत प्रभात में भी कार्य किया। सन् 1983 में जनसत्ता समाचार-पत्र में साहित्य सम्पादक का पद सुशोभित किया। कुछ समय तक वह सहारा समय से भी जुड़े तथा वर्तमान समय में ये नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़कर कार्य कर रहे हैं।

मंगलेश डबराल की रचनाएँ

मंगलेश डबराल के अभी तक चार काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। वे हैं-पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है।

इन्होंने अपनी कविताओं में भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, रूसी, सोनी, जर्मन, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित किये।
इसके अतिरिक्त इन्होंने साहित्य, सिनेमा, संचार, संस्कृति से सम्बन्धित विषयों पर लेखन भी किया।
इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पहल सम्मान से सम्मानित किया गया।
मंगलेश डबराल एक कवि के रूप में ही नहीं बल्कि, एक अच्छे अनुवादक के रूप में भी प्रसिद्ध रहे।

मंगलेश डबराल की कवितओं की विशेषताएँ –

मंगलेश डबराल ने अपनी कविता में सामन्ती बोध और पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का विरोध किया। आज का मानव इतना अधिक संघर्षशील हो गया है कि वह सामाजिक, आर्थिक, नैतिक आदि अनेक मोर्चों पर एक साथ संघर्ष करके नई मर्यादाओं की स्थापना करना चाहता है।
इसलिये कवि ने इनकी आवाज को अपनी कविता में मुख्य स्थान दिया है, इनकी कविता छन्दमुक्त है।

इनकी कविता में बोलचाल के शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। इन्होंने अपनी कविता में नए बिम्बों तथा नये प्रतीकों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा सरल, सहज, पारदर्शी और सुन्दर है।

संगतकार कविता का सार  

किसी मुख्य गायक के साथ गायन-वादन में साथ देने वाले कलाकार को संगतकार कहते हैं।

‘संगतकार’ कविता में साथ देने वाले कलाकार के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। नाटकों, फिल्मों, संगीत तथा नृत्य के क्षेत्र में तो संगतकार होता ही है किन्तु समाज और इतिहास में भी ऐसे लोग मिलते हैं, जो नायक की सफलता में योगदान करते हैं।


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वे सामने नहीं आते परन्तु यह उनकी कमजोरी नहीं मानवीयता है। कवि को संगीत का सूक्ष्म ज्ञान होने तथा कविता में दृश्यात्मकता होने से कविता में ऐसी गति कि पाठक को सब कुछ अपने सामने प्रत्यक्ष घटित होता हुआ प्रत्यक्ष दिखाई देता है ।

संगतकार कविता की व्याख्या

(1) मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज सुंदर कमजोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से

सन्दर्भ तथा प्रसंग 

प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज-2’ में संकलित कवि ‘मंगलेश डबराल’ की रचना संगतकार’से अवतरित है। यहाँ कवि संगतकार
की आवाज की विशेषता बता रहा है।

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती पद की व्याख्या

संगीत कार्यक्रम में मुख्य गायक का स्वर ही प्रधान होता है। उसके स्थिर-गम्भीर स्वर में उसके सहायक संगतकार अपना सुंदर किन्तु अपरिपक्व स्वर मिलाते हैं। यह संगतकार गायक का कोई निकट संबंधी या कृपापात्र हो सकता है। वह गायक का छोटा भाई, शिष्य या फिर कोई निर्धन किन्तु लगनशील संबंधी हो सकता है जो पैदल चलकर संगीत की शिक्षा लेने आया है।

पुराने समय से ही संगतकार का स्वर मुख्य गायक के ऊँचे गम्भीर स्वर के साथ कर गूंजता रहा है।

पद की विशेष

1. संगतकार और मुख्य गायक की आवाज का तुलनात्मक विवेचन है।

2. संगीत के सूक्ष्म ज्ञान ने कवि की कविता में दृश्यात्मकता पैदा कर दी है।

3. उर्दू शब्दों तथा बोलचाल के शब्दों का प्रयोग है।

(2) गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो चुका होता है

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है

जैसा समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था

सन्दर्भ तथा प्रसंग 

प्रस्तुत पद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज-2’ में संकलित कवि मंगलेश डबराल रचित कविता ‘संगतकार’ से अवतरित है। इस अंश में कवि संगतकार के महत्व व उपयोगिता का वर्णन कर रहा है।

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो चुका होता है पद की व्याख्या

जब गायक गीत के अगले चरणों को गाता है और आलाप तथा तानों के कौशल को प्रदर्शित करते हुए अपने सप्तक की सीमा लाँघ जाता है और अनहद नाद से एकाकार होने लगता है, मूल संगीत से दूर चला जाता है, तब संगतकार ही उसे स्थायी पंक्ति को स्मरण कराता है ।

जैसे वह गायक के पीछे छूट गए सामान को सँभाल रहा हो ।


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उसका स्वर गायक को उसके बचपन के दिनों का स्मरण कराता है जब वह संगीत को नया-नया सीख रहा था और मुख्य स्वर से भटक जाया करता था ।

पद की विशेष

1. संगीत के पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग कवि के संगीत ज्ञान को प्रकट करता है।

2. मुख्य गायक जब तानों

में उलझ जाता है तो संगतकार अपनी आवाज देकर उसे सहारा देता है।

3. बोलचाल की भाषा में तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है।

(3) तारसप्तक में जब बैठने लगता है

तारसप्तक में जब बैठने लगता है

उसका गला प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बंधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर कभी-कभी वह यों ही दे देता है

उसका साथ यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग

सन्दर्भ तथा प्रसंग 

प्रस्तुत पद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज-2’ में संकलित, कवि मंगलेश डबराल रचित कविता ‘संगतकार’ से अवतरित है। इस अंश में कवि संगतकार की उपयोगिता बता रहा है।

तारसप्तक में जब बैठने लगता है पद की व्याख्या

जब गायक उच्च स्वर में गायन करता है तो कभी-कभी गाते-गाते उसका गला बैठने लगता है इससे उसकी गाने की प्रेरणा और उत्साह समाप्त से होने लगते हैं। स्वर तेज मंद पड़ने लगता है तब संगतकार का स्वर उसे अपार सांत्वना प्रदान करता है।


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उसके डूबे आत्मविश्वास को नवजीवन प्रदान करता है। कभी-कभी अकारण भी वह गायक की संगत करता है मानो उसे आश्वस्त कर रहा हो कि वह अपने को अकेला न समझे वह उसके साथ है। वह गायक को विश्वास दिलाता है कि वह चाहे तो गाए जा चुके राग को फिर गा सकता है ।

पद की विशेष

1. संगीत के पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग कवि के संगीत ज्ञान को प्रकट करता है।

2. मुख्य गायक जब तानों में उलझ जाता है तो संगतकार अपनी आवाज देकर उसे सहारा देता है।

3. बोलचाल की भाषा में तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है।

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