साँवले सपनों की याद पाठ का सारांश | Class-IX, Chapter-4 (CBSE/NCERT)
पाठ सारांश – साँवले सपनों की याद (Saanvale Sapanon kee Yaad)
लेखक – जाबिर हुसैन
विधा – संस्मरण
पाठ-सार
प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली को समर्पित यह संस्मरण, उनके जीवन और व्यक्तित्व को मर्मस्पर्शी रूप में प्रस्तुत करता है ।
जीवन यात्रा – सालिम अली की अंतिम जीवन-यात्रा पर दृष्टि डालें तो ऐसा लगता है मानो सुनहरे पक्षियों के पंखों पर सवार कोई मनमोहक सपनों का जुलूस मौत की खामोश वादी की ओर चला जा रहा है । इस भीड़ में आगे-आगे चल रहे हैं प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली । आज वह भी जीवन की भीड़-भाड़ और तनावों से अंतिम विदाई ले चुके हैं । उनको वापिस लाना अब किसी के वश की बात नहीं।
पक्षी-स्नेह – सालिम अली इस बात से परेशान थे कि लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखते हैं जैसे कि वे लोग जंगलों, पहाड़ों, झरनों को देखते हैं । किन्तु कोई आदमी केवल पक्षियों का मधुर संगीत सुनकर अपने मन में रोमांच अनुभव नहीं कर सकता ।।
साँवले सपनों का महत्त्व – न जाने कब कृष्ण ने वृदावन में रासलीला, गोपलीला, बाँसुरू -वादन और वन-विहार किया था । परंतु आज भी जब हम वृंदावन में यमुना का साँवला पानी देखते हैं तो महसूस करते हैं कि अभी कोई अचानक आकर बाँसुरी बजाने लगेगा । संगीत का जादू पूरे बगीचे पर छा जाएगा । वृंदावन कभी कृष्ण की बासुरी के जादू से रिक्त नहीं हुआ । सालिम अली भी इसी तरह पक्षी-जगत में समाए हुए हैं।
सालिम अली का व्यक्तित्व – सालिम अली कमजोर शरीर वाले व्यक्ति थे । सौ वर्ष के होने में कुछ दिन बाकी थे। लंबी जीवन-यात्राओं ने उन्हें कमजोर कर डाला था और शायद कैंसर की वजह से वे मृत्यु को प्राप्त हुए। किन्तु जीवन की अंतिम सांस तक वे पक्षियों की खोज और सुरक्षा में लगे रहे । उनकी आँखों पर चढ़ी दूरबीन मृत्यु के बाद ही उतरी थी ।
सालिम अली को प्रकृति में एक हँसती-खेलती जादू भरी दुनिया दिखाई देती थी । उन्हें अपनी मेहनत की दुनिया बनाने में उनकी पत्नी तहमीना का भी योगदान था ।
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प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह से मुलाकात – सालिम अली की एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह से मुलाकात हुई । वे केरल की ‘साइलेंट-वेली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से बचाना चाहते थे । चौधरी चरणसिंह भी मिट्टी में जन्मे थे इसलिए वे सालिम अली की पर्यावरण-सुरक्षा सम्बन्धी बातें सुनकर भावुक हो उठे थे। आज ये दोनों ही व्यक्तित्व नहीं रहे । न जाने अब हिमालय और लद्दाख की बर्फीली धरती पर जीने वाले पक्षियों की चिंता कौन करेगा?
लॉरेंस का संस्मरण – सालिम अली की आत्मकथा का नाम है- ‘फाल ऑफ ए स्पैरो’ । डी.एच. लॉरेंस की मृत्यु के पश्चात् उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अपने पति के बारे में कुछ लिखने का अनुरोध किया गया । फ्रीडा ने कहा मेरे पति के विषय में मुझसे अधिक मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया जानती है । लॉरेंस इतना खुला और सीधा-सरल इंसान था ।
सालिम अली की प्रेरणा और ऊँचाइयाँ – बचपन में एक दिन गलती से सालिम अली के हाथों नीले कंठवाली एक गौरैया घायल हो गई थी । उसी दिन से वे पक्षियों की खोज में रुचि लेने लगे । प्रकृति के रहस्यों को जानने के लिए वे एक-से-एक ऊँचाइयाँ छूने लगे । मानो वे प्रकृति के प्रतिरूप बन गए ।
सालिम अली निरंतर घूमते रहे – वे अखंड सैलानी बने रहे । उन्हें याद करने पर लगता है कि आज भी वे पक्षियों की तलाश में निकले हैं और अभी गले में दूरबीन लटकाए खोजपूर्ण परिणामों के साथ वापस आएंगे।
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