नाना साहब की पुत्री मैना को भस्म कर दिया गया | लेखिका – चपला देवी | पाठ-सार

पाठ सारांश – नाना साहब की पुत्री मैना को भस्म कर दिया गया

                    (Naana Saahab kee putree maina ko bhasm kar diya gaya)

लेखिका – चपला देवी

लेखक परिचय

चपला देवी द्विवेदीयुगीन लेखिका है । वे अपने समय की गुमनाम लेखिकाओं में से एक हैं इस कारण उनका जीवन-परिचय उपलब्ध नहीं है । उनकी रचना को पढ़कर उनकी निम्नलिखित साहित्यिक विशेषताएँ समाने आती हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ (चपला देवी का साहित्य अपने युग के संघर्ष को व्यक्त करता है । उन्होंने स्वतंत्रता-संग्राम के एक अछूते प्रसंग को उठाया है । उनके वर्णन अत्यन्त सजीव एवं वास्तविक हैं । उन्हें पढ़कर स्वतंत्रता-संग्राम की झाँकी सामने उपस्थित हो उठती है ।

भाषा-शैली- चपला देवी की भाषा संस्कृतनिष्ठ है ,साथ ही उन्होन अंग्रेजी और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया है ।

पाठ-सार

‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ सन् 1857 ई. के स्वतंत्रता-संग्राम से सम्बन्धित बलिदान-कथा है । इसमें नाना साहब की किशोरी बेटी के साथ हुए क्रूर अत्याचार का मार्मिक वर्णन है।

बिठूर में राजमहल की लूट

सन् 1857 ई. के संग्राम के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब जब कानपुर में असफल होने पर भागे तो अपनी बेटी मैना को न ले जा सके । मैना बिठूर में स्थित उनके महल में रहती थी । इधर संग्राम की समाप्ति पर अंग्रेजों ने कानपुर में भीषण हत्याकांड किया । उसके बाद वे बिठूर पहुँचे । उन्होंने नाना साहब का राजमहल लूट लिया । लूटने के बाद उन्होंने महल को भस्म करने के लिए तोपें लगाईं ।

सेनापति ‘हे’ की दया

मैना ने अँग्रेज सेनापति से महल पर गोले बरसाने को मना किया । उसने अपनी तथा उसकी पुत्री की मित्रता के बारे में बताया । मैना की बातें सुनकर उसे सब बातें याद आ गईं । उसने कहा कि मैं सरकार की आज्ञा नहीं टाल सकता । किंतु तुम्हारी रक्षा की अवश्य कोशिश करूँगा । तभी जनरल अउटरम वहाँ आ पहुँचा । उसने बिगड़कर पूछा कि नाना साहब का महल तोड़ा क्यों नहीं गया ? सेनापति ‘हे’ ने उससे निवेदन किया कि उस महल को बचा लिया जाए । अउटरम ने कहा—यह असम्भव है । अंग्रेज नाना साहब पर बहुत क्रोधित हैं । इसके लिए गवर्नर जनरल की अनुमति लेनी पड़ेगी । ‘हे’ ने सलाह दी कि गवर्नर जनरल केनिंग को इस आशय का तार भेजा जाए ।

अउटरम ने कहा कि उसे महल तोड़ने और मैना को गिरफ्तार करने का कदम उठाना ही होगा । सेनापति ‘हे’ दुःखी मन से चला गया । अउटरम के सैनिकों ने मैना को गिरफ्तार करने के लिए महल का कोना-कोना छान मारा, किन्तु लड़की का पता न लगा ।


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लार्ड केनिंग का आदेश

संध्या के समय लार्ड केनिंग का तार आया । उन्होंने कहा कि लंदन के मंत्रिमंडल का आदेश है कि नाना का स्मृति-चिह्न तक मिटा दिया जाए । यह आदेश पाकर अउटरम ने नाना साहब के राजमहल पर तोप के गोले बरसाए तथा घंटे भर में उसे मिट्टी में मिला दिया ।

टाइम्स में छपा पत्र

उन्हीं दिनों लन्दन के प्रसिद्ध पत्र ‘टाइम्स’ में एक लेख छपा, उसमें कहा गया था कि कानपुर में अंग्रेजों पर जो हत्याकांड हुआ था, उसका बदला लिया जाना चाहिए । नाना साहब पर दया दिखलाने की बात हास्यास्पद है । सेनापति ‘हे’ का प्रस्ताव कलंक की बात है । लगता है सर ‘हे’ बुढ़ापे में उस महाराष्ट्रीय कन्या की सुंदरता पर मोहित हो गए हैं । वास्तव में नाना साहब का कोई सम्बन्धी जहाँ भी मिले, उसे मार डाला जाना चाहिए । उनकी कन्या को भी ‘हे’ के सामने फाँसी पर लटका दिया जाना चाहिए ।

मैना का क्रंदन

सन् 1957 के सितम्बर मास में आधी रात के समय मैना नाना साहब के राजमहल के खंडहरों पर बैठकर रो रही थी । अउटरम की सेना भी पास ही ठहरी थी । कुछ सैनिक उसका रोना सुनकर वहाँ पहुँचे । मैना बस रोए चली जा रही थी । कोई उत्तर नहीं देती थी ।

तभी जनरल अउटरम वहाँ पहुँचा । वह मैना को पहचान गया । उसने मैना को गिरफ्तार कर लिया । मैना ने अनुरोध किया कि उसे कुछ समय दिया जाए। वह जी भरकर रोना चाहती है, परन्तु पत्थर-हृदय अउटरम ने उसे यह अनुमति न दी । उसे हथकड़ी पहनाकर कानपुर के किले में कैद कर दिया गया ।

मैना की क्रूर हत्या

महाराष्ट्र के इतिहासवेत्ता महादेव चिटनवीस पत्र ‘बाखर’ में यह समाचार छपा कानपुर के किले में एक भीषण हत्याकाण्ड हो गया। नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गयी।” भीषण आग में जलती अनोखी लड़की को देखकर सब लोगों ने उसे देवी समझकर प्रणाम किया।

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