Aadhyaatmik Gyaan | आध्यात्मिक ज्ञान होने पर भी अधूरापन क्यों महसूस होता हैं

Aadhyaatmik Gyaan | आध्यात्मिक ज्ञान होने पर भी अधूरापन क्यों महसूस होता हैं

Aadhyaatmik Gyaan | आध्यात्मिक ज्ञान का अर्थ होता है कि आप अपने मन से थोड़ी दूरी बनाएं और खुद को रिक्त करें। लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं। हम सदा अपने ऊपर अपने मन का वर्चास्व मानते है और उसी के अनुसार ज्ञान प्राप्त करना चाहते है। लेकिन हमारा मन ज्ञान का अर्थ हमेशा संग्रह करने से लेता है। ये मन का दोष नहीं बल्कि मन की प्रकृति है कि वो हमेशा संग्रह करता है।

जब मन स्थूलरूप में होता है तो च़ीजों का संग्रह करता है, जब यह थोड़ा-सा विकसित हो जाता है तो ज्ञान का संग्रह करता है। जब मन में भावना प्रबल हो जाती है तो यह लोगों का संग्रह करने लगता है, मन की मूल प्रकृति बस संग्रह करना है। यही कारण है कि मन सदा संग्रह करना चाहता है और सदा मन एक संग्रहकर्ता के समान कार्य करता है। मन हमेशा कुछ न कुछ एकत्रित संग्रहित करते रहना चाहता है। यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति यह सोचने या विश्वास करने लगता है कि वह आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहा है तो उस समय भी उसका मन तथाकथित (Aadhyaatmik Gyaan) आध्यात्मिक ज्ञान का संग्रह करने में व्यस्त रहता है ना की आध्यात्मिक
ज्ञान (Aadhyaatmik Gyaan) प्राप्त करने में।


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Paramanand | परमानन्द अवस्था

हमारा मन आध्यात्मिक ज्ञान (Aadhyaatmik Gyaan) का संग्रह तो करता है पर उसे समझता नहीं है यही कराण है कि आध्यात्मिक ज्ञान (Aadhyaatmik Gyaan) प्राप्त होने के बाद भी हम अधूरा महसूस करते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान का अर्थ सिर्फ गुरू के शब्दों को संग्रहीत करना नहीं है। बल्कि आपके मन की संग्रह करने की जो जरूरत है, उससे ऊपर उठना है चाहे वो भोजन का संग्रण हो या सांसारिक ज्ञान का। अगर आप को संग्रह करने की जरूरत समझ आती है तो इसका अर्थ है कि अभी आप में एक अधूरापन रह गया है। यही अधूरेपन का भाव आपको आध्यात्मिक ज्ञान होने पर भी महसूस होता हैं। जिस समय हम अपने अस्तित्व के सभी आयामों से पार हो जाते है उस समय हमें परमानन्द अवस्था (Paramanand)  का ज्ञान होता है, जिसे हम आध्यात्मिक ज्ञान के रूप में जानते हैं।

Saadhana | आध्यात्मिक ज्ञान के लिए साधना की अवश्कता 

हमे हमेशा इस बात का बोध होना चाहिए कि संग्रह से जीविका कमाया जा सकता है, संभव है कि संग्रह से आप अपने आस-पास भौतिक जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं। लेकिन संग्रह से आप आध्यात्मिक ज्ञान (Aadhyaatmik Gyaan) नहीं प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान के लिए संग्रह की नहीं साधना (Saadhana) की अवश्कता होती है। आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आपको अपने जीवन में चेतना (Chetana) की आवश्यक होती है। जिसके लिए आपको साधना (Saadhana) और आंतरिक कार्य की ज़रूरत होती है।


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Samarpan | आध्यात्मिक ज्ञान में समर्पण

हमेशा एक बात याद रखें आध्यात्मिक ज्ञान (Aadhyaatmik Gyaan) में समर्पण (Samarpan) कोई ऐसा कार्य नहीं होता है जो आपको करना होता है। बल्कि समर्पण (Samarpan) तो वह चीज़ है जो अपने आप ही होता है, जिस समय आप नहीं होते हैं। कहने का अर्थ है कि जिस समय आप अपनी सारी इच्छाओं को खो देते हैं या कहे की जब आपकी अपनी कोई इच्छा नहीं रह जाती, जिस समय आपके अंदर कुछ भी ऐसा नहीं रह जाता है, जिसे आप अपना कह सकें उस समय आप पर ईश्वर की कृपा होती है। और आप पूर्ण रूप से ईश्वर को समर्पित हो जाते है।

Chetana Aur Saadhana | चेतना और साधना

हम अपनी सोच और महसूस करने से निरन्तर अपने चारों तरफ एक जाल का निर्मण कर रहे हैं। जब हम अपने सोच और महसूस करने से दूरी बनाने लगते है उसे ही चेतना (Chetana) कहते हैं।
(Saadhana) साधना एक अवसर होता है। जिससे आप अपनी ऊर्जा को एकत्रित करते है और बढ़ाते हैं। जिससे आप अपने इच्छाओं और विचारों पर अंकुश लगा सकते हैं।

-Nisha Nik “ख्याति” 

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