एक तिनका | Class-VII, Chapter-13 (CBSE/NCERT)

एक तिनका ( ek tinka)कविता के कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ है। हिंदी भाषा के महान लेखक और कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी का जन्म 15 अप्रेल सन् 1865 में उत्तरप्रदेश राज्य के आजमगढ़ जिले के निज़ामाबाद नामक स्थान पर हुआ। ये ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ थे, लेकिन बाद में इन्होंने सिख धर्म अपनाकर अपना नाम भोला सिंह रख लिया। इन्होंने हिंदी साहित्य में अपना अद्भुत योगदान दिया। वे दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके है और सम्मेलन में इन्हें विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। इनकी प्रमुख रचनाओं में प्रिय प्रवास, कवि सम्राट, वैदेही वनवास, बाल विभव, फूल पत्ते आदि शामिल हैं। माना जाता है कि सन् 1947 में निज़ामाबाद में ही इन्होंने अपनी अंतिम साँसें लीं।


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एक तिनका कविता में कवि हरिऔध जी ने हमें घमंड ना करने की प्रेरणा दी है। इस कविता के अनुसार, एक दिन वो बड़े घमंड के साथ अपने घर की मुंडेर पर खड़े होते हैं, तभी उनकी आँख में एक तिनका गिर जाता है। उन्हें बड़ी तकलीफ होती है और जैसे-तैसे तिनका उनकी आँख से निकल जाता है। तिनके के निकलने के साथ ही कवि के मन से घमंड भी निकल जाता है और उन्हें सरल जीवन जीने का महत्व समझ आ जाता है।

कविता- एक तिनका भावार्थ साहित

मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ ।
एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा ।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ।
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।

भावार्थ- एक तिनका कविता की इन पंक्तियों में कवि हरिऔध अपने घर की मुंडेर पर घमंड में खड़े हैं। तभी अचानक उनकी आँखों में कहीं से उड़कर एक तिनका आ गिरता है।

मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा ।
लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे ।
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी ।

भावार्थ- एक तिनका कविता की इन पंक्तियों में कवि ने आँख में तिनका गिर जाने के बाद अपनी हालत का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि आँख में तिनका चले जाने से उन्हें बड़ी ही बेचैनी होने लगी। उनकी आँख लाल हो गयी और दुखने लगी। लोग कपड़े का उपयोग करके उनकी आँख से तिनका निकालने की कोशिश करने लगे। इस दौरान उनकी ऐंठ और घमंड बिल्कुल चूर हो कर दूर भाग गए।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया ।
तब ‘समझ’ ने यों मुझे ताने दिए ।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ।
एक तिनका है बहुत तेरे लिए ।

भावार्थ- एक तिनका पंक्ति में कवि हरिऔध जी ने तिनका निकल जाने के बाद अपनी हालत का वर्णन किया है। वो इन पंक्तियों में कहते हैं कि जैसे-तैसे उनकी आँखों से तिनका निकल गया। इसके बाद उन्हें मन में एक ख़याल आया कि उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए था, उनका घमंड तो एक मामूली तिनके ने ही तोड़ दिया। इन पंक्तियों के ज़रिए कवि हमें भी घमंड से दूर रहने का संदेश दे रहे हैं। चाहे इंसान कितना भी बड़ा हो जाए, उसका घमंड चकनाचूर हो ही जाता है।

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