सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता उत्साह और अट नहीं रही है कविता का सार तथा मूल पाठ, सप्रसंग व्याख्या और कवि परिचय| Class-X, Chapter-4 (CBSE/NCERT)

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता उत्साह और अट नहीं रही है कविता का सार तथा मूल पाठ, सप्रसंग व्याख्या और कवि परिचय| Class-X, Chapter-4 (CBSE/NCERT)

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय

जीवन परिचय- फक्कड़पन और निर्भीक अभिव्यक्ति में कबीर का प्रतिनिधित्व करने वाले, कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 1896 ई. में बंगाल के मेदिनीपुर गाँव में हुआ था। आपके पिता पं. रामसहाय त्रिपाठी थे।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा हाईस्कूल तक हुई। इसके पश्चात् आपने स्वाध्याय द्वारा हिन्दी, संस्कृत तथा बांग्ला भाषाओं का अध्ययन किया। बाल्यावस्था में ही ‘निराला’ के माता-पिता उन्हें छोड़ स्वर्गवासी हो गए। युवावस्था में एक-एक करके पत्नी, भाई, भाभी तथा चाचा भी महामारी की भेंट चढ़ गए। अंत में उनकी परम प्रिय पुत्री सरोज भी उन्हें छोड़कर परलोक चली। गई। मृत्यु के इस ताण्डव से ‘निराला’ टूट गए। उनकी करुण व्यथा ‘सरोज स्मृति’ नामक रचना के रूप में बाहर आई।

सन् 1961 ई. में हिन्दी के इस निराला साहित्यकार का देहावसान हो गया। साहित्यिक परिचय-कविवर ‘निराला’ ने हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं को अपनी विलक्षण प्रतिभा से अलंकृत किया।


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उन्होंने काव्य-रचना के अतिरिक्त कहानी, उपन्यास तथा आलोचना पर भी अपनी लेखनी चलाई किन्तु मुख्य रूप से वह एक कवि के रूप में ही प्रसिद्ध रहे। ‘निराला’ की रचनाएँ छायावाद, रहस्यवाद एवं प्रगतिवादी विचारधाराओं से प्रभावित हैं। निराला जी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।उत्साह और अट नहीं रही है

निराला की प्रमुख-रचनाएँ

अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, नए पत्ते, राम की शक्तिपूजा, सरोज-स्मृति तथा लिली, चतुरी चमार, अपरा, अलका, प्रभावती और निरूपमा आदि गद्य रचनाएँ हैं।

कविता ‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ कविता का सार

‘उत्साह’

‘निराला’ की कविता, ‘उत्साह’ में दार्शनिकता, क्रान्ति, विद्रोह, प्रेम की सहजता तथा प्रकृति के विराट स्वरूप का चित्रण है ।

पाठ्यपुस्तक क्षितिज-2 में संकलित इनकी कविता ‘उत्साह’ बादल को सम्बोधित एक आह्वान गीत है। इस कविता में बादल एक ओर पीड़ित-प्यासे लोगों की आकांक्षा को पूरा करने वाला है तो दूसरी ओर वह नई कल्पना और नये अंकुर के लिए विप्लव, विध्वंस और क्रान्ति की चेतना को संभव करने वाला भी है। कविता में ललित कल्पना तथा क्रान्ति चेतना दोनों की व्यंजना हुई है।

‘अट नहीं रही है’


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‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन की मादक प्रकृति का चित्रण है। कविता में फागुन की प्राकृतिक शोभा के विविध स्वरूपों का वर्णन है। सुन्दर शब्दों तथा लय के कारण कविता सजीव और सुन्दर हो गई है।

उत्साह कविता की व्याख्या

(1 ) बादल, गरजो ! –

बादल, गरजो ! –
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ !
ललित ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले !
वज छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो बादल, गरजो !

संदर्भ तथा प्रसंग

प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक क्षितिज-2 में संकलित, कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की रचना’उत्साह’ से लिया गया है। यहाँ कवि बादलों की गर्जना में उत्साह के स्वर सुन रहा है।

बादल, गरजो ! पद की व्याख्या

कवि बादल के गर्जन में नवचेतना और सृजनात्मक उत्साह का स्वर सुनता है। वह बादल से गरजने का आग्रह करता है। कवि कहता है है बादल! तुम गरज-गरज कर सारे विस्तृत आकाश में छा जाओ। सुंदर काले घुँघराले केशों जैसे रूप वाले बालकों के जैसे बादल ! तुम गरजो। तुम एक कवि के समान हृदय में बिजली की चमक जैसे उत्साह से पूर्ण हो । तुम संसार में नए जीवन का संचार करने वाले हो। अपनी वज्ञ जैसी विध्वंसक शक्ति को छिपाए रखो और मेरे हृदय में एक नई कविता को जन्म दो । हे बादल ! तुम गरजते रहो ।

पद की विशेष

1. कवि उत्साह से परिपूर्ण है। उसे बादलों के गरजने की आवाज में भी चेतना जगाने वाला स्वर सुनाई देता है।

2- कवि ने अपनी काव्य कुशलता से बादलों का शब्द-चित्र को प्रस्तुत किया है।

3. कविता के ध्वन्यात्मक प्रभाव से नाद सौन्दर्य की वृद्धि हो रही है।

(2)  विकल विकल, उन्मन थे उन्मन

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
तप्त धरा,जल से फिर
शीतल कर दो-बादल, गरजो !

संदर्भ तथा प्रसंग

प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज-2 में संकलित, कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की रचना ‘उत्साह’ से लिया गया है। यहाँ कवि बादलों को तपती धरती पर बरसने के लिए आग्रह कर रहा है।

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन पद की व्याख्या

कवि कहता है – हे बादल ! संसार के सारे लोग ग्रीष्म की तपन से व्याकुल और अनमने हो रहे हैं । ऐसे समय में अज्ञात दिशा से आकर तुम अनंत आकाशं में छा गए हो । अब अपनी शीतल जल-वर्षा से इस तपती हुई धरती को भिगोकर इसका ताप दूर कर दो ।


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पद की विशेष

1. कवि ने गरमी से तपती धरती का वर्णन किया है।

2. आधुनिक काल की छायावादी काव्य धारा से संबंधि इस कविता की रचना खड़ी बोली हिन्दी में की गई है।

3. ध्वन्यात्मक प्रभाव कविता के नाद सौन्दर्य को बढ़ा रहा है।

अट नहीं रही है कविता की व्याख्या

1.  अट नहीं रही है

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है ।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है ।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है ।

संदर्भ तथा प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश पाठ्यपुस्तक क्षितिज-2 में संकलित कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘अट नहीं रही है’ से अवतरित है। कवि यहाँ वसंत ऋतु के फाल्गुन मास के प्रकृति सौन्दर्य का वर्णन कर रहा है।

अट नहीं रही है पद की व्याख्या

कवि वसंत ऋतु में आने वाले फागुन मास की प्राकृतिक शोभा का वर्णन कर रहा है । कवि कहता है कि फागुन मास का यह असीम प्राकृतिक सौन्दर्य इतना विविध और व्यापक है कि यह आँखों में समा नहीं पा रहा है । लगता है प्रकृति के शरीर में न समाने वाली यह कान्तिमय शोभा बाहर निकली पड़ रही है ।

फागुन की सुगंधित वायु का एक झोंका घर-घर को मादक गंध से भर रहा है । वासंती मस्ती से उड़ान भरते पक्षियों के कारण सारा आकाश पंखमय हो रहा है । फागुनी शोभा इतनी आकर्षक है कि उस पर से दृष्टि हटाए नहीं हट रही है ।

कहीं हरे और लाल पत्तों से डालियाँ लदी हैं और कहीं मंद-मंद गंध वाले फूलों के समूह प्रकृति-सुंदरी के कंठ में पड़ी पुष्प-माला जैसे प्रतीत हो रहे हैं । फागुनी प्राकृतिक-शोभा ने हर स्थल को इतनी सुंदरता दे डाली है जो वहाँ समा नहीं पा रही है ।


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पद की विशेष

1. प्रकृति की शोभा का वर्णन कवि की काव्य-कौशलता का उत्कृष्ट उदाहरण है।

2. मानवीकरण, अनुप्रास आदि अलंकारों के प्रयोग ने कविता में सजीवता पैदा कर दी है।

3. फाल्गुन के मादक वातावरण को पढ़कर मन स्वतः ही उल्लास से भर जाता है।

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