ल्हासा की ओर सारांश | Lhasa ki aur Summary | Class-IX, Chapter-2 (CBSE/NCERT)

ल्हासा की ओर पाठ (Lhasa ki aur Summary) में राहुल सांकृत्यायन द्वारा सन् 1930 ई. में की गई तिब्बत यात्रा का वर्णन है।

नेपाल-तिब्बत मार्ग का परिचय – नेपाल से तिब्बत की ओर जाने वाला मार्ग प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण रहा है । फरी-कलिङपोङ् मार्ग खुलने से पहले नेपाल और भारत के साथ तिब्बत में व्यापार का यही मार्ग था । इसका सैनिक कार्यों के लिए भी प्रयोग होता था । इस मार्ग पर अनेक पुराने किले और चैकियाँ स्थित हैं । कभी इनमें चीनी सैनिक रहा करते थे । आज उनमें से कुछ किलों में तिब्बती किसानों की बस्तियाँ हैं ।

तिब्बती समाज – तिब्बती समाज खुला हुआ है । यहाँ जाति-पाँति, छुआ-छूत और परदा नहीं है । अपरिचित लोग भी घरों में जाकर अपने लिए चाय बनवा सकते हैं या स्वयं बनाकर ला सकते हैं । यहाँ चाय-मक्खन, नमक और सोडा मिलाकर तैयार की जाती है और खोटी नामक टोंटीदार बर्तन में भरकर दी जाती है।

ठहरने का प्रबन्ध – उजाड चीनी किले से चलते समय लेखक से राहदारी मांगने एक व्यक्ति आया । लेखक ने अपनी और अपने साथी सुमति की चिटें उसे सौंप दी । भिखमंगों जैसी वेश-भूषा होने पर भी सुमति की जान-पहचान के कारण ठहरने के लिए एक अच्छी जगह मिल गई ।

डाँडा थोङ्ला से गुजरना – डाँडा थोङ्ला की यात्रा बड़ी खतरनाक थी । डाँडे बहुत ऊँचाई से गुजरते हैं । यहाँ दूर-दूर तक बस्तियाँ नहीं दिखाई देतीं । यहाँ डाकुओं का भी भय बना रहता था । लेखक को भिखमंगे वेश के कारण डाकुओं की चिन्ता नहीं थी । जहाँ कहीं ऐसा संकट आता था तो वे टोपी उतारकर, जीभ निकालकर कुची-कुची एक पैसा कहते हुए भीख माँगने लगते थे ।

लङ्कोर को प्रस्थान – लङ्कोर जाने के लिए लेखक और सहयात्री सुमति ने घोड़ों की व्यवस्था की । मार्ग में सबसे ऊँचे स्थान पर डाँडे के देवता के सींगों, रंग-बिरंगे कपड़ों और झंडियों से सजे थान बने हुए थे । लेखक का घोड़ा बहुत धीमे चल रहा था । वह साथियों से पीछे रह गया और रास्ता भटक गया । बहुत देर से पहुंचने पर प्रतीक्षा में खड़े सुमति ने लेखक पर बड़ा क्रोध किया लेकिन घोड़े की दशा बताए जाने पर क्रोध ठंडा हो गया । लङ्कोर में भी लेखक को सुमति की कृपा से ठहरने के लिए अच्छा स्थान और भोजन मिला ।

तिङ्गी से शेकर विहार – लेखक तिकी के विशाल मैदान में था । इस मैदान में एक छोटी-सी पहाड़ी थी जिसका नाम तिरी-समाधि-गिरि था । आस-पास के गाँवों में सुमति यजमान थे। वह गण्डे बाँटकर दक्षिणा बटोरने जाना चाहते थे । इसमें बहुत समय लगने की आशंका थी । अतः लेखक ने उनकी आर्थिक क्षतिपूर्ति का वायदा करके उन्हें जाने से रोका । आगे की यात्रा काफी कष्टप्रद रही । देर से चलने के कारण कोई बोझा ढोने वाला न मिला । सामान पीठ पर ढोना पड़ा । साथ ही तिब्बत की गर्मी और सर्दी का विलक्षण मेल भी झेलना पड़ा । शरीर का सूरज की ओर वाला भाग तप रहा था और पीछे कंधे बरफ हो रहे थे । शेकर विहार की खेती के प्रबंधक बड़े सज्जन पुरुष थे । उन्होंने लेखक का प्रेम से स्वागत किया । यहाँ एक मंदिर में बौद्ध धर्म के 103 हस्तलिखित ग्रन्थ थे । लेखक ने वहीं अपना आसन लगाया और पुस्तका क अध्ययन में डूब गया । सुमति अपने यजमानों के पास चल दिए। दोपहर बाद लेखक ने आगे की यात्रा आरम्भ की ।

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