Period And Superstitions | मासिक धर्म और उस से जुङे अंधविश्वास
Mental Problem During Period | Period And Superstitions| मासिक धर्म और उस से जुङे अंधविश्वास
Mental Problem During Period | मासिक धर्म एक ऐसी क्रिया जिससे हर महिला को गुजरना होता है। Mental Problem During Period | दुर्भग्य की बात तो ये है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को शरीरिक पीङा सहन करने के साथ-साथ सामाजिक पीङा को भी सहन करना पङता है। Mental Problem During Period | इस दौरान महिलाएं मानिसक तनाव से गुजर रही होती है साथ ही उन्हें इस दौरान विशेष आराम और खान-पान की भी अवश्कता होती है। लेकिन इन सब के उल्ट हकीकत तो कुछ और है।
Period And Superstitions| मैं -Nisha Nik “ख्याति” खुद एक महिला होकर आज सभी महिलाओं की इस पीङा को इस Artical में लिखने का प्रयास कर रही हूं। वो पीङा जिससे मैं और सभी स्त्रियां गुजरती है।
Period | मासिक धर्म की शुरूवात
बच्चपन पूरी तरह से जाता भी नहीं है कि बहुत सारी नई पाबंदियां हम लङकियों पर ये समाज लगा देता है। उस वक्त हमारा समाज भूल जाता है कि हमारी बदलती हुई इस मनस्थिति में हमें पाबंदियों की नहीं बल्कि की हमारे सवालों के जवाब की अवश्कता होती है। लेकिन इस बात को समझे कौन? यहां तक की हमारी मां जो खुद इस स्थिति से गुजर चुकी होती है वो भी हमारी मनोस्थिति को नहीं समझ पाती है। मुझे ऐसा लगता है कि शायद उनके पास भी हमारे सवालों का जवाब नहीं होता है। इसलिए वो हम से नजरे चुरा कर हमारे सवालों से बचती हैं।
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Mental Problem During Period | पहले मासिक धर्म के समय मन में उठे सवाल
जब मेरा पहला मासिक धर्म हुआ या ये कहूं की जब मासिक धर्म के होने की प्रक्रिया की शुरूआत हुई उस समय मेरे दिमाग में बहुत से सवाल थे जैसे क्या ये सिर्फ मुझे हुआ है? ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ है? क्या मैं अपनी दोस्त से इसके बारे में बताऊँ? इन दिनों मेरे साथ मां कुछ अगल सा बरताव क्यों करती है? इस दौरान हमें पूजा-पाठ से क्यों अलग रखा जाता है, घर में तुलसी का पौधा, आचार छुने से क्यों मना किया जाता है? और भी बहुत से सवाल जिनका जवाब मैं जनना चाहति थी उस दौराना पर मिला नहीं, खैर जहां तक मुझे लगता है कि ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं हर लङकी के मन में आते होगें जब उसका पहला मासिक धर्म होता होगा। पर उसको भी मेरी तरह ही मन को संतुष्ट ना कर पाने वाले ही जवाब मिलते होंगे जैसे कि ऐसा ही होता है पर क्यों होता है नहीं पता।
Period And Superstitions | मासिक धर्म को लेकर अलग- अलग धर्मों के मत
हिंदू धर्म में, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को सलाह दी जाती है कि रसोई घर में काम न करें, संभोग न करें, ना ही वो मंदिर में प्रवेश करें, इसके अलावा उन्हें किसी भी धर्मिक और पवित्र कार्य में भाग लेना अथवा छूने की आज्ञा नहीं दी जाती है। हमारे धर्म ग्रंथों में किसी भी प्रकार से इस तरह महिलाओं को अपवित्र नहीं कहा गया है लेकिन वर्तमान समय में लोगों ने इसे अपनी समझ अनुसार इसे सभी स्त्रियों के लिए कुंठा का कारण बना दिया है।
मेरा अपना मत है कि मैं इसे ईश्वर की आज्ञा नहीं मानती बल्कि लोगों का अंधविश्वास मानती हूं। क्योंकि हमारे हिंदू धर्म में स्त्री को शाक्ति रूपा, प्राकृति रूपा मना जाता है। जब स्त्री शाक्ति है, प्राकृति है तो वो अपवित्र कैसे हो सकती है।
हां ये हो सकता है कि हमारे धर्म ग्रंथों में इस दौरान महिलाओं को कुछ कार्य से अवकाश लेने की बात कही गई हो । मेरा मनाना है कि इसका अर्थ सिर्फ इस दौरान होने वाली पीङा और असहजता से रहात दिलाने के लिए किये गये थे ना कि उनके लिए वो नियम की तरह थोपे जाने के लिए।
यहूदीयों में मासिक धर्म के दौरान स्त्री को निदाह कहा जाता है और इस दौरान संभोग करना प्रतिबंधित माना जाता है।
इस्लाम में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को नमाज़ पढ़ने से रोका जाता है। जबकि कुरान में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि इस दौरान महिलाएं नमाज नहीं पढ़ सकती हैं।
जैन धर्म में भी हिन्दू मतों के अनुसार ही महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है और ना ही पवित्र वस्तुओं को छूने की अनुमति है।
लेकिन कुछ ऐसे धर्म भी है जो मासिक धर्म को अपवित्र नहीं बल्कि एक शरीरिक क्रिया मानते है।
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ईसाई में इस तरह के किसी भी नियम का पालन महिलाओं द्वारा नहीं किया जाता है। इसके अलावा उन्हें चर्च में भी जानें की अनुमाति होती है।
बौद्ध धर्म में, मासिक धर्म को एक प्राकृतिक शारीरिक उत्सर्जन माना जाता है । बौद्ध धर्म के अनुसार, पुरुष और महिला दोनों के लिए समान नियम हैं।
सिख धर्म में भी मासिक धर्म के दौरान, महिला बिना किसी रोक के गुरुद्वारा में जा सकती है और अपने सभी कर्तव्यों का पालन कर सकती है।
Period And Superstitions | ज्ञान ही कर सकता है इन अंधविश्वासों का खण्डन
कोई भी स्त्री किस प्रकार से अछूत और दूषित हो सकती है। और जो ये मानते है किस्त्री अछूत और दूषित होती है तो उस व्यक्ति को अपने जन्म के अस्तित्व के बारे में विचार अवश्य करना चाहिए। क्योंकि सभी व्यक्तियों का जन्म योनी से ही होता है। और जिस योनी से होने वाले रक्त स्त्राव को वो दूषित मानता है, वही जीवन को देने की स्मभावनाओं से पूर्ण होती है। अगर आप जीवन की उन सम्भावनाओं को ही अछूत और दूषित मानते है तो आपका जन्म भी उसी अछूत और दूषित सम्भावनाओं से हुआ है, इसलिए आप भी अछूत और दूषित ही कहलायेंगे।
अगर आप इस तरह के अंधविश्वासों का खण्डन करना चाहते है तो वास्तव में स्वंय के अस्तिव को जाने और उसे स्वीकार करें । उसी के बाद आप इन अंधविश्वासों को समाज में बढ़ने से रोक सकते और अपने समाज को कुंणाओं से मुक्त करवा सकते है।
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