सूरदास के पद | Surdas ke pad |Class-VIII, Chapter-15 (CBSE/NCERT)


सूरदास के पद (Surdas ke pad) , सूरदास जी की रचना है। यहां दिए गए  दोनों ही सूरदास के पद (Surdas ke pad) श्रीकृष्ण की बाललीलाओं पर केंद्रित हैं।


सूरदास के पद, सूरदास जी की रचना है। सूरदास जी को हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक माना जाता है। इनका जन्म सन् 1468 में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास स्थित रुनकता गांव में हुआ। ये प्रभु श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। इनके जन्म से अंधे होने के बारे में विद्वानों में मतभेद है। इन्होंने हिंदी काव्य के स्तर को काफी ऊपर पहुँचाया। इनकी प्रमुख रचनाएं सूरसागर, सूरसारावली, नल-दमयंती, साहित्य-लहरी, ब्याहलो आदि मानी जाती हैं।
यहां महाकवि सूरदास जी के दो पद दिए गए हैं। दोनों ही पद श्रीकृष्ण की बाललीलाओं पर केंद्रित हैं। इनकी भाषा बड़ी ही सरल, प्यारी और मंत्रमुग्ध कर देने वाली है।

कविता- सूरदास के पद, भावार्थ सहित

मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै, नागिनी सू भुइँ लोटी।
काँचौ दूध पियावत पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूरज चिरजीवौ दौ भैया, हरि हलधर की जोटी।

भावार्थ– कवि सूरदास जी अपने इस पद में कान्हा जी के बचपन की एक लीला का वर्णन किया है। इसके अनुसार, यशोदा माता कान्हा को दूध पिलाने के लिए कहती हैं कि इससे उनकी छोटी-सी चोटी, लंबी और मोटी हो जाएगी। कान्हा इसी विश्वास में काफी दिन दूध पीते रहते हैं। एक दिन उन्हें ध्यान आता है कि उनकी चोटी तो बढ़ ही नहीं रही है।


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तब वो यशोदा माँ से कहते हैं, माँ मेरी चोटी कब बढ़ेगी? मुझे दूध पीते हुए इतना समय हो गया है, लेकिन ये तो अब भी छोटी ही है। आपने तो कहा था कि दूध पीने से मेरी चोटी किसी बेल की तरह लंबी और मोटी हो जाएगी। फिर उसे कंघी से काढ़ा जाएगा, गूंथा जाएगा, फिर नहाते समय वो किसी नागिन की तरह लहराएगी। फिर कान्हा अपनी माँ से शिकायत करते हैं कि उन्होंने चोटी का लालच देकर उन्हें कच्चा दूध पिलाया है, जबकि उन्हें तो माखन-रोटी पसंद है।
अंतिम पंक्ति में कवि सूरदास कान्हा और बलराम की जोड़ी ओर मुग्ध होकर उनकी लंबी उम्र की कामना करते हैं।

तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ।
दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढ़ूँढ़ि ढँढ़ोरि आपही आयौ।
खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं, दूध दही सब सखनि खवायौ।
ऊखल चढ़ि, सींके कौ लीन्हौ, अनभावत भुइँ मैं ढ़रकायौ।
दिन प्रति हानि होति गोरस की, यह ढ़ोटा कौनैं ढ़ँग लायौ।
सूर स्याम कौं हटकि न राखै तैं ही पूत अनोखौ जायौ।

भावार्थ– कवि सूरदास जी ने अपना यह पद कान्हा की माखनचोरी की लीला को समर्पित किया है। गोपियां यशोदा माँ के पास आकर कहती हैं
‘हे यशोदा! तुम्हारे पुत्र कृष्ण ने हमारा मक्खन चोरी करके खा लिया है। दोपहर में वो घर को सूना देखकर घर में घुस गया और अपने दोस्तों के साथ मिलकर सारा दूध-दही खा गया।’
आगे गोपियाँ कहती हैं,


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‘कान्हा ने ओखली पर चढ़कर छींके से मक्खन उतारा और खा-पीकर कुछ मक्खन ज़मीन पर भी फैला दिया। यशोदा, आपने ऐसा उत्पाती लड़का पैदा कर दिया है, जिसकी वजह से हमें हर रोज़ दूध-दही का नुकसान हो रहा है। आप उसे रोकती क्यों नहीं हो, क्या आपने ही एक अनोखे पुत्र को जन्म दिया है?’

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