प्राचीन नाटक और आधुनिक नाटक में अन्तर | Difference between ancient drama and modern drama

नाटक- नाटक काव्य का एक रूप है जो श्रवण द्वार ही नहीं अपितु दृष्टी द्वार भी दर्शको का  मनोरंजन करती है | समय के साथ नाटक के प्रारूप में भी अंतर आया है जिसे हम प्राचीन नाटक और आधुनिक नाटक में अन्तर के रूप में समझ सकते है|

प्राचीन नाटक और आधुनिक नाटक में अन्तर | Difference between ancient drama and modern drama

प्राचीन नाटक

• नायक विशिष्ट गुणों से संपन्न हो (वह उदात्त, उद्धत, प्रशांत या ललित प्रकार का हो)।

• रस की प्रधानता होनी चाहिये।

• कथा में संघर्ष केवल मध्य तक ही हो, उसके बाद नायक की विजय स्पष्ट होनी चाहिये। (इसमें ‘क्लाइमेक्स’ के लिये स्थान नहीं है।)

• चरित्र की अपेक्षा सत्य और न्याय-सिद्धांत की प्रधानता अपेक्षित है।

• आदर्शवाद ही अंत का निष्कर्ष है।

• नाटक में मृत्यु आदि दुःखद • घटनाएँ वर्जित हैं।

• नाटक केवल-मात्र सुखांत होना चाहिये।

• रंगमंच की व्यवस्था संकेतात्मक है।


यह भी पढ़ें:-हिन्दी राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अन्तर


आधुनिक नाटक

• नायक में किन्हीं विशिष्ट गुणों की आवश्यकता नहीं है। वह किसी भी परिस्थिति का मनुष्य मात्र हो।

• रस की अपेक्षा मनोविज्ञान की प्रधानता आवश्यक है।

• कथा में संघर्ष अंत तक होना चाहिये। अंत में चरम सीमा (जिसे अंग्रेज़ी में ‘क्लाइमेक्स’ कहते हैं) व्यवस्थित रूप से रहे।

• चरित्र (Character) का विश्लेषण ही प्रमुख है।

• यथार्थवाद ही अंत का निष्कर्ष है।

• नाटक में मृत्यु आदि दुःखद • घटनाएँ वर्जित नहीं हैं।

• नाटक जीवन की परिस्थितियों के अनुसार सुखांत और दुःखांत दोनों ही हो सकते हैं।

• रंगमंच की व्यवस्था वैज्ञानिक और कलात्मक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *