JNU पर बढती राजनीति | Politics on JNU

आज सवाल और जबाब दोनो ही उन माहानुभाव लोगों से जो JNU को बंद करने की बात करते है, और जिन्हे लगता है की JNU में पढने वाले छात्र देश का पैसा बर्बाद कर रहे या जो टैक्स देते है उनके पैसो को बेकार में बर्बाद कर रहे है। तो उन सभी के लिए यह जनना बहुत जरूरी है की देश में टैक्स सभी भरते है यहाँ तक की वो छोटा बच्चा भी जो सिर्फ टाॅफी खरीद कर खाना जानता है। दूसरी बात टैक्स का पैसा हम सरकार को देते है और वो उसे कहाँ कैसे खर्च करती इसका जबाब भी हमें सरकार से मांगना चाहिए, ना की छात्रों को कहना चाहिए की वो देश का पैसा बर्बाद कर रहे । जिन लोगों को ऐसा लगता  है की देश में उच्च शिक्षा में पैसे बर्बाद होते है तो फिर उन्हें ये विचार आवश्य करना चाहिए इस देश में नेताओं पर कितना खर्च होता है क्या आम जनता की तरह ही उन्हें अपने खर्च अपनी कमाई से नहीं पूरा करना चाहिए।

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अगर इस पर बुद्धिजीवि ये कहेंगे की वो नेता है उन पर देश को खर्च करना जरूरी है तो यही बात उच्च शिक्षा के लिए भी है।जो बुद्धिजीवी शोध की शिक्षा और उच्च शिक्षा को देश पर बोझ मानते है उन्हे पता होना चाहिए उच्च शिक्षा हेतु पंजीकरण कराने वालों का अनुपात हमारे यहां दुनिया में सबसे कम 11% है जबकि अमेरिका में यह 83% है ।

गुणवत्ता की दृष्टि से उच्च शिक्षा में भारत की रैंकिग काफी नीचे है। और रही बात शोध पर खर्च की तो जितना होना चाहिए उससे कम ही हो रहा है। देश में शोध पर 0.8%का खर्च हो रहा है जबकि कम से कम 2%खर्च होना चाहिए। इस साल (2020) तो हमारे नेताओं ने उच्च शिक्षा के बजट में ही करोङ की कटौती कर दी है।

जहाँ हमारे देश में शिक्षा को सुदृढ, समग्र, संतुलित बनाने की बात करनी चाहिए वही लोग JNU जैसे उच्च शिक्षा और शोध विधालय को बंद करवाने की बात कही जा रही है।

और रही बात प्रोटेस्ट की तो शांती से प्रोटेस्ट करना गलत नहीं है और ना ही सरकार के आगे अपनी बात रखना गलत है। और ना ही सरकार की गलत बातों पर आवज उठाना गलत  है।

nisha nik”ख्याति”

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