मेरे बचपन के दिन पाठ का सारांश | Class-IX, Chapter-6 (CBSE/NCERT)
मेरे बचपन के दिन (mere bachapan ke din)
लेखिका- महादेवी वर्मा
लेखिका – परिचय
जीवन-परिचय – महादेवी वर्मा ‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जाती है। इनका नाम हिन्दी साहित्य के छायावादी कवियों में प्रमुख रुप से लिया जाता है । इनका जन्म सन् 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के फ़र्रुखाबाद नामक नगर में हुआ था । इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए किया तथा प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या नियुक्त हो गईं । बाद में वहीं कुलपति बनीं । विक्रम, कुमायूँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट्. की मानद उपाधि से सम्मानित किया । भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। ‘यामा’ पर उन्हें भारतीय ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मिला । सन् 1987 ई. में उनका देहांत हो गया ।
रचनाएँ –
महादेवी जी की काव्य-रचनाएँ इस प्रकार हैं- नीरजा, रश्मि, नीहार, सांध्यगीत, दीप शिखा, यामा आदि । उनकी गद्य-रचनाओं में प्रमुख हैं – अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ ।
साहित्यिक विशेषताएँ – महादेवी वर्मा करुणा और मानवतावाद के भावों को प्रकट करने वाली लेखिका हैं । उन्होंने जहाँ दीन-हीन मानवता का मार्मिक चित्रण किया है, वहीं निरीह पशु-पक्षियों का भी हृदयस्पर्शी वर्णन किया है । नीलकंठ, मोर, गौरा गाय, सोना हिरनी, गिल्लू आदि ऐसे प्रभावी रेखाचित्र हैं कि ये पशु – पात्र भी अपने सजीव व्यक्तित्व से पाठक को मुग्ध कर देते हैं । महादेवी जी की कोमल लेखनी का स्पर्श पाकर ये मानव की तरह बोलने लगते हैं ।
भाषा-शैली – महादेवी जी तत्सम शब्दों का प्रयोग करती हैं । उनकी वाक्य – रचना भी लंबी और घुमावदार है । शब्दों पर उनकी पकड़ अद्भुत है । इनकी भाषा में पाठक को बाँध लेने की क्षमता है । महादेवी जी ने यथास्थान वर्णनात्मक, भावात्मक, शब्द-चित्रात्मक, आलंकारिक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग भी किया है ।
पाठ-सार
‘मेरे बचपन के दिन’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरण है । इसमें उन्होंने अपने बचपन की कुछ यादें प्रस्तुत की हैं-
जन्म और शिक्षा
पहले महादेवी जी के परिवार में लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था । 200 वर्ष बाद महादेवी ने परिवार में जन्म लिया । महादेवी के बाबा ने दुर्गा-पूजा करके कन्या माँगी थी । अतः महादेवी को बचपन में कोई कष्ट नहीं सहना पड़ा । उन्हें उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी, संस्कृत पढ़ने की सुविधा दी गई । उनकी माता ने उन्हें हिन्दी पढ़ने के लिए प्रेरित किया । उन्हें मिशन स्कूल की प्रार्थना और वहाँ का वातावरण पसंद नहीं आया तब उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में पाँचवीं कक्षा में दाखिल किया गया । यहाँ हिंदू और ईसाई दोनों धर्मों की लड़कियाँ थीं ।
सुभद्रा कुमारी चौहान से दोस्ती
छात्रावास के हर कमरे में चार छात्राएँ रहती थीं । महादेवी के कमरे में रहने वाली एक सीनियर छात्रा थी- सुभद्रा कुमारी चौहान । वे कविता लिखती थीं । महादेवी की माता भी भक्ति-गीत लिखती और गाती थीं । उन्हीं को देखकर महादेवी भी लिखने लगी थीं । सुभद्रा कुमारी हिन्दी खड़ी बोली में लिखती थीं । एक दिन सुभद्रा कुमारी चौहान को पता चला कि महादेवी भी छिप-छिपकर लिखती हैं। उन्होंने उनकी कविताएँ पढ़ीं और सारे हॉस्टल को बता दिया कि महादेवी भी लिखा करती हैं। तब से दोनों में मित्रता हो गई। खेल-कूद के समय वे दोनों बैठकर तुकबंदी किया करती थीं । सौभाग्य से वह तुकबंदी ‘स्त्री दर्पण’ नामक पत्रिका में छप भी जाती थी ।
कवि-सम्मेलनों में हिस्सा लेना
उन दिनों कवि-सम्मेलन होने लगे थे । हिन्दी के प्रचार का समय था । महादेवी भी सम्मेलनों में जाने लगीं । क्रास्थवेट की एक अध्यापिका उन्हें साथ लेकर जाती थीं । कवि-सम्मेलन के अध्यक्ष हरिऔध, श्रीधर पाठक, रत्नाकर जी जैसे महान कवि होते थे । उन्हें प्राय: प्रथम पुरस्कार मिलता था ।
गांधीजी से मुलाकात
एक कवि सम्मेलन में महादेवी को चाँदी का नक्काशीदार कटोरा भेंट मिला । उन्हीं दिनों गांधीजी आनंद भवन आए । आनंद भवन स्वतंत्रता-संग्राम का केंद्र बन चुका था । महादेवी तथा अन्य छात्राएँ रोज अपने में जेब – खर्च में से कुछ धन एकत्र करके देश हित में अर्पित किया करती थीं । महादेवी ने बापू को पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा दिखाया । बापू ने कविता तो नहीं सुनी । हाँ, वह कटोरा अवश्य रख लिया । महादेवी उस कटोरे को भेंट करके प्रसन्न हुईं।
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छात्रावास का भेदभाव रहित वातावरण
छात्रावास में जेबुन नाम की एक मराठी कन्या महादेवी का साफ-सफाई का काम कर देती थी । वह हिन्दी और मराठी की मिली-जुली भाषा में बोलती थी । वहाँ एक उस्तानी बेगम भी थी, जिसे उसकी मराठी पर एतराज था । उन दिनों छात्रावास में सांप्रदायिकता नहीं थी । अवध से आई लड़कियाँ अवधी बोलती थीं तो बुंदेलखंड की बुंदेली । सब एक ही मेस में खाते थे, एक प्रार्थना करते थे । कहीं कोई झगड़ा नहीं था।
बेगम साहिबा का किस्सा
जब महादेवी विद्यापीठ में आईं, तब भी बचपन के ये संस्कार उसी तरह बने रहे । जिस कंपाउंड में महादेवी रहती थीं, उसी में जवारा के पुराने नवाब भी रहते थे । उनकी बेगम अनुरोध करती थीं कि महादेवी उन्हें ताई कहें । बेगम के बच्चे महादेवी की माँ को ‘चची जान’ कहा करते थे । उनका एक लड़का था । उसको राखी बाँधने के लिए वे कहती थीं । राखी के दिन वह उसे तब तक पानी भी नहीं देती थीं जब तक कि महादेवी उन्हें राखी न बाँधें । इसी भाँति मुहर्रम पर इनके लिए भी वस्त्र बनते थे ।
महादेवी के भाई का नामकरण
महादेवी का छोटा भाई जन्मा तो बेगम ने महादेवी के पिता से कहकर नेग लिया और ताई बनकर कपड़े आदि भेंट किए । उनका नाम ‘मनमोहन’ भी बेगम साहिबा ने रखा । वही मनमोहन वर्मा बाद में जम्मू और गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बने । बेगम साहिबा के घर में अवधी बोली जाती थी । परन्तु हिन्दी और उर्दू भी चलती थी ।
पहले वातावरण में जितनी निकटता थी, वह अब सपना हो गई है । यह सपना सच हो जाता तो भारत कुछ और ही हो गया होता ।