Alone Poetry In Hindi |”खोने का डर सदा रहा”| Nisha Nik | Fankaaar
Alone Poetry | “खोने का डर सदा रहा” Poem एक Alone Poetry है। हम में से अकसर ज्यादातर व्यक्ति अकेलेपन में ऐसी चीजों को खोने से डरने लगते है जो हमारे पास होता ही नहीं और इस उत्थल-पुत्थल में सदा ये समझ बैठते हैं कि हमारा अपना कोई नहीं है। इस Alone Poetry में हम अपने इसी भाव को बढेंगे । अगर आप भी ऐसा महसूस करते है और दूसरों को बतना चाहते हैं तो आप इस Hindi Poem के जारिए बता सकते हैं।
Hindi Poetry “खोने का डर सदा रहा”
ना जानें क्यों, जो नहीं है उसे खोने का डर सदा रहा
किसे अपना कहूं, जीवन में ये उत्थल-पुत्थल सदा रहा
अंधेरे में मैं और समानों से भरा एक कमरा सदा रहा
साथ सबके, लेकिन खामोश अकेले में, मैं सदा रहा
कभी –कभी खमोशियां जब लङने आती है मुझसे
खिलौनों की बहों में जा कर छुप जाना सदा रहा
अब उन से जबावदेही होगी, अब वो बोलेंगी मुझसे
बस इस एक उम्मीद में उनसे बाते करना सदा रहा
Hindi Poetry “khone ka dar sada raha”
na jaanen kyon, jo nahin hai use khone ka dar sada raha
kise apana kahoon, jeevan mein ye utthal-putthal sada raha
andhere mein main aur samaanon se bhara ek kamara sada raha
saath sabake, lekin khaamosh akele mein, main sada raha
kabhee –kabhee khamoshiyaan jab lanane aatee hai mujhase
khilaunon kee bahon mein ja kar chhup jaana sada raha
ab un se jabaavadehee hogee, ab vo bolengee mujhase
bas is ek ummeed mein unase baate karana sada raha