ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ठाकुर का कुआँ | Omaprakaash Vaalmeeki Kee Kavita Thaakur Ka Kuaan

ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ठाकुर का कुआँ में बताया है कि दलितों की यातना इतनी बड़ी है की मिट्टी भी उनकी अपनी नहीं है।

ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआँ’ इनकी कविता ‘ठाकुर का कुआं’ में वाल्मीकि जी ने बताया है की किस तरह से उच्च वर्ग सदियों से दलितों पर अत्याचार कर रहा है वो काम करते है पर किसी भी जीज को वो अपना नही कह सकते । वाल्मीकि जी ने ये भी बताया है कि दलितों की यातना इतनी बड़ी है की मिट्टी भी उनकी अपनी नहीं है।

कविता ठाकुर का कुआँ

चूल्‍हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का ।


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भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का ।

बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की ।

कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्‍ले ठाकुर के
फिर अपना क्‍या ?
गाँव ?
शहर ?
देश ?


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chool‍ha mittee ka
mittee taalaab kee
taalaab thaakur ka .

bhookh rotee kee
rotee baajare kee
baajara khet ka
khet thaakur ka .

bail thaakur ka
hal thaakur ka
hal kee mooth par hathelee apanee
fasal thaakur kee .

kuaan thaakur ka
paanee thaakur ka
khet-khalihaan thaakur ke
galee-muhal‍le thaakur ke
phir apana k‍ya ?
gaanv ?
shahar ?
desh ?

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