राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति और समस्याएं
राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति
सविधान सभा के सम्मुख एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि भारत की राजभाषा किस भाषा को बनाया जाय। पर्याप्त विचार विमर्श के उपरान्त 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। इसलिए हम लोग प्रतिवर्ष 14 सितम्बर की हिन्दी दिवस मानते हैं।
संविधान के भाग 17 के अध्याय 1 की धारा 343 (i) के अनुसार :
“संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।” किन्तु इसी धारा के अन्तर्गत यह प्रावधान कर दिया गया कि संविधान के प्रारम्भ होने से 15 वर्ष की कालावधि के लिए उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी होता रहेगा, जिसके लिए वह पहले से प्रयुक्त होती रही हो। भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ, अत 15 वर्षों की अवधि 26 जनवरी, 1965 को समाप्त हो गई, किन्तु राजनीतिक दवाबों के चलते सरकार ने इस अवधि को आगे बढ़ा दिया। परिणामतः अंग्रेजी का प्रयोग राजकीय कार्यों में अब भी हो रहा है। भारत की राजभाषा होने पर भी हिन्दी को अंग्रेजी से मुकाबला करना पड़ रहा है।
संविधान में राजभाषा सम्बन्धी अनुच्छेद भाग 17 के अध्याय 1 में धारा 343 से 351 तक हैं। धारा 343 में संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी को घोषित किया गया है। अकों का प्रयोग वही रहेगा जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चलित है।
अनुच्छेद 344 राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा आयोग एवं समिति के गठन से सम्वन्धित है। अनुच्छेद 345, 346, 347 में प्रादेशिक भाषाओं सम्बन्धी प्रावधान है। अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, संसद और विधान मण्डलों में प्रस्तुत विधेयकों की भाषा के सम्बन्ध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
अनुच्छेद 349 में भाषा से सम्बन्धित विधियां अधिनियमित करने की प्रक्रिया का वर्णन है।
अनुच्छेद 350 में जनसाधारण की शिकायतें दूर करने के लिए आवेदन में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा तथा प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा सुविधाएं देने और भाषायी अल्पसंख्यकों के बारे में दिशा-निर्देश का प्रावधान किया गया है
अनुच्छेद 351 में सरकार के उन कर्तव्यों एवं दायित्वों का उल्लेख किया गया है, जिनका पालन हिन्दी के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए उसे करना है।
इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति ने अधिसूचना संख्या 59/2/54 दिनांक 3-12-55 के द्वारा सरकारी प्रयोजनों के हिन्दी भाषा आदेश 1955 जारी किया है, जिसके द्वारा अग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिन्दी का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों हेतु किया जा सकता है-
1. जनता के साथ पत्र व्यवहार के लिए।
2. प्रशासनिक रिपोर्ट, सरकारी संकल्प, संसद में प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट के लिए।
3. हिन्दी भाषी राज्यों के साथ पत्र-व्यवहार के लिए।
4. अन्य देश की सरकारों और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ पत्र व्यवहार के लिए।
5. सधियो एव ऋणों के लिए।
स्पष्ट है कि सविधान में हिन्दी को वह स्थान दिया गया है जो किसी राज्यभाषा को मिलना चाहिए, किन्तु साथ ही अंग्रेजी का विकल्प भी है। परिणामतः अग्रेजी भक्त अधिकारी हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी का प्रयोग निरन्तर कर रहे हैं।
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राजभाषा हिन्दी की समस्याएं
हिन्दी पूर्णतः राजभाषा नहीं बन सकी है. इसके कुछ प्रमुख कारण निम्नवत् है–
1. अधिकांश सरकारी अधिकारी अंग्रेजी के पक्के भक्त है। वे अंग्रेजी के ही माध्यम से चयनित होकर राजकीय सेवा में आये हैं। इस कारण से हिन्दी का प्रयोग करने के प्रस्ताव फाइलों में दबे रह जाते है।
2. अग्रेजी अग्रेजों की भाषा है और अग्रेजों ने बहुत समय तक इस देश में शासन किया है. इसलिए अंग्रेजी का व्यवहार करना लोग उच्यता और गौरव का प्रतीक समझते है।
3. लोगों में देशभक्ति, राष्ट्रीयता और अपनी सस्कृति से लगाव की भावना उत्पन्न नहीं हुई है।
4. हिन्दी की वर्णमाला में 52 अक्षर है। इसलिए टाइपराइटर, कम्प्यूटर और छापेखाने का काम हिन्दी में उतनी शीघ्रता से नहीं होता, जितनी शीघ्रता से अंग्रेजी माध्यम से होता है।
5. विदेशों से सम्पर्क का माध्यम अग्रेजी है। विदेश जाने के इच्छुक लोग अंग्रेजी का व्यावहारिक ज्ञान करने के लिए पूर्णरूप से अग्रेजी का व्यवहार करते हैं और उसी के चिन्तन में लगे ते है और हिन्दी का व्यवहार भूलकर भी नहीं करते।
6. सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, हाईकोर्ट और अधिकांश जिला कोर्ट भी अपना काम अग्रेजी में करते है. इसलिए वकीलो, न्यायाधीशों आदि को अंग्रेजी का प्रयोग करना पड़ता है।
ये समस्याएं हिन्दी के राजभाषा बनने के मार्ग में बाधा बनी हुई है इनका समाधान निम्नलिखित उपायों द्वारा किया जा सकता है-
(1) अंग्रेजी भक्त सरकारी अधिकारी धीरे-धीरे सेवा निवृत्त हो जायेंगे। यदि नये आने वाले अधिकारी अग्रेजी भक्त न बन पावें तो हिन्दी राजभाषा बन सकती है। अधिकारियों की मानसिकता बदलने से ही हिन्दी राजभाषा बन सकेगी।
(2) स्वाभिमान की भावना को जाग्रत करके ही अंग्रेजी के व्यवहार को गौरवपूर्ण और हिन्दी के व्यवहार को हीनता समझना दूर किया जा सकता है।
(3) देशभक्ति, राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता का भाव
शासन नहीं जगा सकता। यह कम हिन्दी भक्तो को ही करना पड़ेगा।
(4) टाइपराइटर, कम्प्यूटर एवं छापेखाने में हिन्दी की प्रवृत्ति के अनुरूप सुधार करके इनमें हिन्दी के माध्यम से तीव्रगति से कार्य किया जा सकता है।
(5) विदेशों से सम्पर्क सभी को नहीं करना पड़ता। विदेशो में जाने वाले भारतीय प्रतिनिधि मण्डल को अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए।
(6) आई. ए. एस., आई पी एस में हिन्दी माध्यन अपनाया जाने लगा है। उच्च न्यायालय और जिला न्यायालय कुछ कार्य हिन्दी में करने लगे है। आवश्यकता इस बात की है कि सभी सरकारी कामकाज हिन्दी में ही किया जाय।
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