बूढ़ा बचपन | Budha Bachpan
आज हम कहने के लिए अत्याधिक शिक्षित समाज के मध्य में रहते हैं, आज हर परिवार, माता पिता अपने बच्चे की शिक्षा पर समय से ही पूर्व बल देता है| हर परिवार चाहता है हमारा बच्चा मानसिक रूप या कहे दिमागी रूप से तेज हो पर क्या ऐसा समाज में हो रहा है?
यह सवाल आपके लिए कितना सोचनीय है पता नहीं पर मेरे लिए तो बहुत ही सोचनीय सवाल है कि हम अपने बच्चे को बचपन (Bachpan) ना देकर बुढ़ापा दे रहे हैं|
अब आप यह सोच रहे होंगे कि किस तरह से हम अपने बच्चे को बुढ़ापा दे रहे हैं?
चलिए आइए इसपर मिलकर विचार करते हैं:-
आज टेक्नोलॉजी ने हमारी दुनिया को हमारी हथेली पर लाकर रख दिया| टेक्नोलॉजी की मदद से आज हम मिनटों में हर वह जानकारी पा सकते हैं जिसके बारे में दुनिया का एक व्यक्ति भी जानता हो और वह इस टेक्नोलॉजी से जुड़ा हो|
आज किसी स्थान की विशेषता को जानने या समझने के लिए उस स्थान पर जाने की आवश्यकता नहीं बल्कि आप बिना हिले-डुले किसी स्थान विशेष, व्यक्ति विशेष या विचार के बारे में जान सकते हैं|
चलो यह तो बात ज्ञान की रही- लेकिन टेक्नोलॉजी ने हमारे ज्ञान ग्रहण करने की सीमा को ही संकुचित नहीं किया बल्कि हमारे मनोरंजन के तरीकों को भी संकुचित कर दिया है| आज ज्यादातर व्यक्ति वास्तविक खेल खेलने की बजाए एक वर्चुअल गेम अपने टेक्नोलॉजी की मदद से खेलना पसंद करते हैं|
आज ज्यादातर व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिए अपने दिमाग को थकाना अधिक उपयोगी समझता है बजाय अपने शरीर के:- ये सभी बदलाव हम युवाओं तक सीमित नहीं है बल्कि आज पैदा हुए हर बच्चा यही करता है| वह वास्तविक दुनिया के साथ कम और वर्चुअल दुनिया के साथ अधिक रहना पसंद करता है|
एक बच्चे को कहानियां, कविताएं परिवार का कोई सदस्य नहीं सुनाता बल्कि एक टेक्नोलॉजी की मदद से वह यह सब सुनता है|
आज एक बच्चे के साथ खेलने के लिए, सिखाने के लिए, समय देने के लिए अगर कोई उसके पास होता है तो वह है टेक्नोलॉजी जो कि उसका परिवार है|
और दिन प्रतिदिन बच्चे को उस टेक्नोलॉजी से इतना प्यार और अपनापन हो जाता है कि वह उस टेक्नोलॉजी के साथ एक ही स्थान पर अपना सारा दिन बिताना चाहता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक बूढ़ा व्यक्ति मजबूरी में अपना समय एक ही स्थान पर बिताता है|
टेक्नोलॉजी को जानना अच्छा है पर क्या एक बच्चे के जीवन में जो स्थान परिवार, समुदाय, समाज का होना चाहिए उस स्थान को टेक्नोलॉजी के संकुचित कर देना सही है|
आज हम यह सोचकर बेशक खुश हो सकते हैं कि हमारा बच्चा घर के अंदर अकेले ही रहना पसंद करता है| हमें तंग नहीं करता है पर क्या यह प्रक्रिया उसके स्वास्थ विकास के लिए सही है|
“खो गया देखो कहां वो बचपन
उदण-फंग करके मां को तरसाना
भरी-दोपहर में खेलने की जिद मचाना
छुपते-छुपाते घर से बाहर भाग जाना
घर के अंदर आने के लिए डांट खाना
खो गया देखो कहां वो बचपन
लगता है हो गया है बूढ़ा बचपन”
-Nisha Nik