श्रीधर पाठक की प्रसिद्ध काव्य पंक्तियाँ |Shreedar Padhak Ki Prashidh Kavita
श्रीधर पाठक (Shreedhar Padhak) का जन्म 11 जनवरी 1880 को जौंधरी नामक गाँव, आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था और इनकी मृत्यु 13 सितंबर 1928 को हुआ। श्रीधर पाठक (Shreedhar Padhak) हिंदी में प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के कवि कहलाते थे। इनका व्यक्तित्व प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी था । ये हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और इन्हें ‘कविभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया गया था।
निज भाषा बोलाहु लिखहु पढ़हु गुनहु सब लोग ।
करहु सकल विषयन विषै निज भाषा उपजोग ।।
– श्रीधर पाठक
वंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अभिमानी हों
बांधवता में बँधे परस्पर, परता के अज्ञानी हों
निंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज अज्ञानी हों
सब प्रकार पर-तंत्र, पराई प्रभुता के अभिमानी हों
– श्रीधर पाठक
जग में कोटि-कोटि जुग जीवै,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवै,
सुखद वितान सुकृत का सीवै,
रहै स्वतंत्र हमेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
– श्रीधर पाठक
सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन करो
अविरत-सेवा-सन्नद्ध हो सब विधि सुख-साधन करो
– श्रीधर पाठक
जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद
जय नगर, ग्राम अभिराम हिंद
जय, जयति-जयति सुख-धाम हिंद
जय, सरसिज-मधुकर निकट हिंद
जय जयति हिमालय-शिखर-हिंद
जय जयति विंध्य-कन्दरा हिंद
जय मलयज-मेरु-मंदरा हिंद
जय शैल-सुता सुरसरी हिंद
जय यमुना-गोदावरी हिंद
जय जयति सदा स्वाधीन हिंद
जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद .
– श्रीधर पाठक
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