साहित्य में आधुनिकतावाद | Saahity mein Aadhunikataavaad

आधुनिकतावाद (MODERNISM)

आधुनिक शब्द समय सापेक्ष है किन्तु इसका अर्थ अत्यन्त लचीला है जिसे विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त किया जाता है। आधुनिकतावाद का प्रयोग वस्तुतः दो सन्दर्भों में किया जाता है।

(i) प्राचीन शास्त्रवादी (Classical) धारा की प्रतिक्रियात्मक व्याख्या और

(ii) नवीन वैज्ञानिक आविष्कारों के आलोक में वर्तमान की व्याख्या।

आधुनिकतावाद का प्रारम्भ प्रथम विश्वयुद्ध (1914) से माना जाता है। इसका प्रचलन लगभग आधी शती तक अंग्रेजी एवं अमेरिकन साहित्य में विषयवस्तु और शिल्प (Form) के स्तर पर विभिन्न साहित्यकारों-यीट्स, इलियट, आडेन, कोनरेड, लारेन्स, वर्जीनिया वुल्फ, वर्नार्ड शा, रिचर्ड्स, एफ. आर. लेविस की कृतियों में देखा जा सकता है।


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‘आधुनिकतावाद’ बहुआयामी विचारधारा है। दो विश्वयुद्धों ने साहित्य को भी बहुत कुछ प्रदान किया। परमाणु बम की विभीषिका ने समाज के परम्परावादी सोच पर प्रश्नचिन्ह लगाए और नई मान्यताओं और सवेदनाओं का उत्तरोत्तर विकास हुआ जिसका प्रतिफलन साहित्य और कला में कथ्य और शिल्प के स्तर पर दिखाई देने लगा। स्पष्ट है कि आधुनिकतावाद परम्परित मूल्यो, मानौताया। साहित्य की नवशास्त्रवादी दृष्टि पर प्रश्न चिन्ह लगाता है तथा वर्तमान की स्वीकृति और समीक्षा के नये सोपान प्रस्तुत करता है।

हिन्दी में आधुनिकतावाद का उपयोग सर्वप्रथम अज्ञेय ने अपने उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ में नैतिक मूल्यों को तोड़ते हुए रूपायित किया। आधुनिकतावाद परम्परा और इतिहास पर स्वचेतना को प्रश्रय होता है इसलिए उसमें परम्परा की स्वीकृति न होकर परम्परा के प्रति अवमानना और नकार है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास से उत्पन्न सामाजिक परिवर्तनों की उसमें स्वीकृति है। मानव स्वातन्त्र्य, को व्यक्ति चेतना की अभिव्यक्ति तथा रूपवादी और प्रयोगवादी शिल्प की वायवी भाषा में प्रस्तुति जैसी कतिपय प्रवृत्तियां ‘आधुनिकतावाद’ में दिखाई पड़ती है।


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