राष्ट्रीय एकता की सुरक्षा- हमारा कर्त्तव्य, हिंदी निबंध | Raashtreey Ekata Kee Suraksha- Hamaara Karttavy, Hindi Nibandh
राष्ट्रीय एकता की सुरक्षा- हमारा कर्त्तव्य
राष्ट्रीय एकता का अर्थ है- हमारी एक राष्ट्र के रूप में पहचान। हम सर्वप्रथम भारतीय हैं इसके बाद हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख आदि हैं।
राष्ट्रीय एकता की सुरक्षा- हमारा कर्त्तव्य, इस निबंध में हम निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत बात करेंगे –
राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय
राष्ट्रीय एकता अखण्डता की आवश्यकता
राष्ट्रीय एकता, अखण्डता की सांस्कृतिक विरासत
राष्ट्रीय एकता का वर्तमान स्वरूप
राष्ट्रीय एकता और हमारा कर्त्तव्य
राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय
राष्ट्रीय एकता का अर्थ है-
हमारी एक राष्ट्र के रूप में पहचान। हम सर्वप्रथम भारतीय हैं इसके बाद हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख आदि हैं। अनेक विविधताओं और भिन्नताओं के रहते हुए भी आन्तरिक एकता की भावना, देश के सभी धर्मो, परम्पराओं, आचार-विचारों, भाषाओं और उपसंस्कृतियों का आदर करना भारतभूमि और सभी भारतवासियों से हार्दिक लगाव बनाए रखना, यही राष्ट्रीय एकता का स्वरूप है। भारत एक विशाल-विस्तृत सागर के समान हैं। जिस प्रकार अनेक नदियाँ बहकर सागर में जा मिलती हैं और उनकी पृथकता मिट जाती है, उसी प्रकार विविध वर्णों, धर्मो, जातियों, विचारधाराओं के लोग भारतीयता की भावना से बँधकर एक हो जाते हैं। जिस प्रकार अनेक पेड़-पौधे मिलकर एक वन प्रदेश का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार विविध मतावलम्बियों को एकता से हो भारत का निर्माण हुआ है।
राष्ट्रीय एकता-अखण्डता की आवश्यकता-
भारत विविधताओं का देश है। यह एक संघ-राज्य है। अनेक राज्यों या प्रदेशों का एकात्म स्वरूप है। यहाँ हर राज्य में भिन्न-भिन्न रूप, रंग, आचार, विचार, भाषा और धर्म के लोग निवास करते हैं। इन प्रदेशों की स्थानीय संस्कृतियाँ और परम्पराएँ हैं। इन सभी से मिलकर हमारी राष्ट्रीय या भारत का विकास हुआ है। हम सब भारतीय है, यही भावना सारी विभिन्नताओं को बाँधने बाला सूत्र है। यही राष्ट्रीय एकता का अर्थ और आधार है। विविधता में एकता भारत राष्ट्र की प्रमुख विशेषता है। उसमें अनेक धर्मों और सांस्कृतिक
विचारधाराओं का समन्वय है। भारतीयता के सूत्र में बंधकर ही हम दृढ़ एकता प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के बिना भारत का भविष्य अंधकारमय है।
राष्ट्रीय एकता-अखण्डता सांस्कृतिक विरासत
राष्ट्रीय एकता और अखण्डता भारतीय संस्कृति की देन है। भारत विभिन्न धर्मा, विचारों और मतों को मानने वालों का निवास रहा है। भारतीय संस्कृति इन विभिन्नताओं का समन्वित स्वरूप है। भारत की भौगोलिक स्थिति ने भी इस सामाजिक संस्कृति यो निर्माण में योगदान किया है। विभिन्न आघात सहकर भी भारतीय एकता सुरक्षित रही है, इसका कारण उसका भारत की सामाजिक संस्कृति से जन्म होना ही है।
राष्ट्रीय एकता का वर्तमान स्वरूप
आज हमारी राष्ट्रीय एकता संकट में है। यह संकट बाहरी नहीं आंतरिक है। हमारे राजनेता और शासकों ने अपने भ्रष्ट आचरण से देश की एकता को संकट में डाल दिया है। अपने वोट बैंक को बनाए रखने के प्रयास में इन्होंने। भारतीय समाज को जाति-धर्म, आरक्षित-अनारक्षित, अगड़े-पिछड़े, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक और प्रादेशिक कट्टरता के आधार पर बाँट दिया है। इन बड़बोले, कायर और स्वार्थी लोगों ने राष्ट्रीय एकता को संकट में डाल दिया है।
राष्ट्रीय एकता और हमारा कर्त्तव्य
राष्ट्रीय एकता पर हो रहे इन प्रहारों ने राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। इस संकट का समाधान किसी कानून के पास नहीं है। आज हर राष्ट्रप्रेमी नागरिक को भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा होना है। आपसी सद्भाव और सम्मान के साथ प्रेमभाव को बढ़ावा देना है। समाज के नेतृत्व व संगठन का दायित्व राजनेताओं से छीनकर निःस्वार्थ समाजसेवियों के हाथों में सौंपना है। इस महान कार्य में समाज का हर एक वर्ग अपनी भूमिका निभा सकता है। राष्ट्रीय एकता को बचाए रखना हमारा परम कर्तव्य है।
भारत विश्व का एक महत्वपूर्ण जनतंत्र है। लम्बी पराधीनता के बाद वह विकास के पथ पर अग्रसर है। भारत की प्रगति के लिए उसकी एकता-अखण्डता का बना रहना आवश्यक है, प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि भारत की अखण्डता को सुनिश्चित करे ।
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