कवि, सहित्यकार कुंवर नारायण जी कि प्रतिनिधि कविताएं | Kunvar Naaraayan Ji Ki Pratinidhi Kavitaen
कवि, सहित्यकार कुंवर नारायण जी कि प्रतिनिधि कविताएं इन्हें अपनी रचनाकला में इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को जोड़ने के लिए जाना जाता है।
कुँवर नारायण को अपनी रचनाकला में इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को जोड़ने के लिए जाना जाता है। कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी अपनी लेखनी चलायी है। यही कारण है कि उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है इसलिए उन्हें साहित्य जगत में कोई एक नाम देना सम्भव नहीं। कुंवर नारायण के लेखन में सहज संप्रेषणीयता के साथ प्रयोग भी नजर आता है । उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है।
शब्दों का परिसर – कुंवर नारायण
मेरे हाथों में
एक भारी-भरकम सूची-ग्रन्थ है
विश्व की तमाम
सुप्रसिद्ध और कुप्रसिद्ध जीवनियों का :
कोष्ठक में जन्म-मृत्यु की तिथियाँ हैं।
वे सब उदाहरण बन चुके हैं।
कुछ नामों के साथ
केवल जन्म की तिथियाँ हैं।
उनकी अन्तिम परीक्षा
अभी बाक़ी है।
ज़ो बाक़ी है
वह कितना बाक़ी रहने के योग्य है
एक ऐसा सवाल है
जिसके सही उत्तर पर निर्भर है
केवल एक व्यक्ति की नहीं
बल्कि व्यक्तियों के पूरे समाज की
सफलता या असफलता।
पढ़ते-पढ़ते एक दिन मुझे लगा
एक ही जीवनी को बार-बार पढ़ रहा हूँ
कभी एक ही अनुभव के विभिन्न पाठ
कभी विभिन्न अनुभवों का एक ही पाठ!
अन्तिम समाधान के नाम पर
उतने ही विराम
जितने वाक्य,
और जितने वाक्य
उससे कहीं अधिक विन्यास।
शब्दों का विशाल परिसर-
मानो एक-दूसरे से लगे हुए
छोटे-छोटे अनेक गुहा-द्वार,
भीतर न जाने कितने
विविध अर्थों को
आपस मं जोड़ता हुआ
भाषाओं का मानस-परिवार।
अचानक ही घोषित होता- “समाप्त”
हम चौंक पड़ते
अमूल्य सामग्री,साज-सज्जा,
सारा किया-धरा
तितर-बितर।
विषय
और वस्तु
वही रहते।
‘समाप्ति’ को उलट कर
रेतघड़ी की तरह
फिर रख दिया जाता आरम्भ में :
और फिर शुरू होती
धूमधाम से
किसी नए अभियान की
उल्टी गिनती
ढिंढोरा पिटता-
इस बार बिल्कुल मौलिक!
लेकिन इस बार भी यदि
अधूरा ही छूट जाए कोई संकल्प
तो इतना विश्वास रहे
कि सही थी शुरूआत
पुन: एक की गिनती से / कुंवर नारायण
कुछ इस तरह भी पढ़ी जा सकती है
एक जीवन-दृष्टि-
कि उसमें विनम्र अभिलाषाएं हों
बर्बर महत्वाकांक्षाएं नहीं,
वाणी में कवित्व हो
कर्कश तर्क-वितर्क का घमासान नहीं,
कल्पना में इंद्रधनुषों के रंग हों
ईर्ष्या द्वेष के बदरंग हादसे नहीं,
निकट सम्बंधों के माध्यम से
बोलता हो पास-पड़ोस
और एक सुभाषित, एक श्लोक की तरह
सुगठित और अकाट्य हो
जीवन-विवेक।
दुनिया की चिन्ता / कुंवर नारायण
छोटी सी दुनिया
बड़े-बड़े इलाके
हर इलाके के
बड़े-बड़े लड़ाके
हर लड़ाके की
बड़ी-बड़ी बन्दूकें
हर बन्दूक के बड़े-बड़े धड़ाके
सबको दुनिया की चिन्ता
सबसे दुनिया को चिन्ता ।
और जीवन बीत गया / कुंवर नारायण
इतना कुछ था दुनिया में
लड़ने झगड़ने को
पर ऐसा मन मिला
कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा
और जीवन बीत गया..।
मौत ने कहा / कुंवर नारायण
फ़ोन की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
दरवाज़े की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
अलार्म की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
एक दिन
मौत की घण्टी बजी…
हड़बड़ा कर उठ बैठा —
मैं हूँ… मैं हूँ… मैं हूँ..
मौत ने कहा —
करवट बदल कर सो जाओ।
आँकड़ों की बीमारी / कुंवर नारायण
एक बार मुझे आँकड़ों की उल्टियाँ होने लगीं
गिनते गिनते जब संख्या
करोड़ों को पार करने लगी
मैं बेहोश हो गया
होश आया तो मैं अस्पताल में था
खून चढ़ाया जा रहा था
आँक्सीजन दी जा रही थी
कि मैं चिल्लाया
डाक्टर मुझे बुरी तरह हँसी आ रही
यह हँसानेवाली गैस है शायद
प्राण बचानेवाली नहीं
तुम मुझे हँसने पर मजबूर नहीं कर सकते
इस देश में हर एक को अफ़सोस के साथ जीने का
पैदाइशी हक़ है वरना
कोई माने नहीं रखते हमारी आज़ादी और प्रजातंत्र
बोलिए नहीं – नर्स ने कहा – बेहद कमज़ोर हैं आप
बड़ी मुश्किल से क़ाबू में आया है रक्तचाप
डाक्टर ने समझाया – आँकड़ों का वाइरस
बुरी तरह फैल रहा आजकल
सीधे दिमाग़ पर असर करता
भाग्यवान हैं आप कि बच गए
कुछ भी हो सकता था आपको –
सन्निपात कि आप बोलते ही चले जाते
या पक्षाघात कि हमेशा कि लिए बन्द हो जाता
आपका बोलना
मस्तिष्क की कोई भी नस फट सकती थी
इतनी बड़ी संख्या के दबाव से
हम सब एक नाज़ुक दौर से गुज़र रहे
तादाद के मामले में उत्तेजना घातक हो सकती है
आँकड़ों पर कई दवा काम नहीं करती
शान्ति से काम लें
अगर बच गए आप तो करोड़ों में एक होंगे …..
अचानक मुझे लगा
ख़तरों से सावधान कराते की संकेत-चिह्न में
बदल गई थी डाक्टर की सूरत
और मैं आँकड़ों का काटा
चीख़ता चला जा रहा था
कि हम आँकड़े नहीं आदमी हैं
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