कैदी और कोकिला-माखनलाल चतुर्वेदी पाठ का सारांश | Class-IX, Chapter-9 (CBSE/NCERT)

राष्ट्रप्रेमी कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कैदी और कोकिला’ कविता के माध्यम से गुलाम भारत के लोगों को क्रांति करने का आह्वान किया है ।

कवि-माखनलाल चतुर्वेदी ;जीवन-परिचय

पं. माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन् 1889 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के एक गाँव बाबई में हुआ । मात्र 16 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपनी आजीविका अध्यापन से प्रारंभ की। तत्पश्चात् संपादन के क्षेत्र में सक्रिय हो गए। ‘प्रभा’ पत्र का संपादन करते-करते वे गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए । चतुर्वेदी जी पर विद्यार्थी जी की देश-सेवा का अत्यधिक प्रभाव पड़ा । उन्हीं दिनों उन्होंने ‘एक भारतीय आत्मा’ इस उपनाम से ओजपूर्ण राष्ट्रीय कविताएँ लिखीं । उन्होंने ‘कर्मवीर’ एवं ‘प्रताप’ पत्रिका का भी संपादन किया। साहित्य की महान सेवा के लिए सागर वि. वि. ने उन्हें मानद डी.लिट् की उपाधि प्रदान की तथा भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया । 30 जनवरी, सन् 1968 ई. को उनका स्वर्गवास हो गया ।
रचनाएँ – चतुर्वेदी जी की प्रमुख रचनाएँ हैं : ‘हिम किरीटनी’, ‘हिम तरंगिनी’, ‘साहित्य देवता’, ‘युगचरण’, ‘समर्पण’, ‘माता’, ‘वेणु लो गूँजे धरा’ आदि उनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं । वे कवि के साथ-साथ एक सफल गद्यकार भी हैं ।

साहित्यिक विशेषताएँ – चतुर्वेदी जी के काव्य का मुख्य स्वर राष्ट्रीय भावना है । त्याग, बलिदान, प्रखर राष्ट्र-भक्ति आदि उनकी राष्ट्रीयता की मुख्य विशेषताएँ हैं । उनके काव्य से स्वतंत्रता आंदोलन को अत्यधिक बल प्राप्त हुआ ।

भाषा-शैली – चतुर्वेदी जी की भाषा शुद्ध, मानक खड़ी बोली है । उसमें संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों की प्रमुखता है । उनकी भाषा में अरबी-फारसी के शब्दों के अतिरिक्त बोलचाल की भाषा के शब्दों का भी मुक्त भाव से प्रयोग हुआ है। उन्होंने प्रायः मुक्तक काव्य लिखा है । छंदों के क्षेत्र में उन्होंने कुछ नवीन प्रयोग किए हैं दो छंदों के मेल से नवीन छंद का निर्माण किया है । वस्तुतः माखनलाल चतुर्वेदी का ध्यान भाषा-शैली की ओर न होकर ‘भाव’ की ओर अधिक केंद्रित है । अतः शिल्प की अपेक्षा उनका भावपक्ष अधिक सबल है ।

कैदी और कोकिला कविता का पाठ-सार

राष्ट्रप्रेमी कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कैदी और कोकिला’ कविता के माध्यम से गुलाम भारत की जेलों की दुर्दशा का वर्णन करते हुए लोगों को क्रांति करने का आह्वान किया है । कारागृह में बंदी कवि अँधेरी रात में कोयल की मधुर आवाज सुनकर आंदोलित हो उठता है । उसका मन प्रश्नों और जिज्ञासाओं से भर उठता है । रात में उसे जेल के बंदी वातावरण की याद हो आती है । वह चोरों, डाकुओं, बटमारों के संग भूखा रहने को मजबूर है । चारों ओर अँधेरा है । कवि कोयल से पूछता है कि वह इस दुःखदायक वातावरण में क्या करने आई है ? शायद वह जेल पर अपनी मधुरता बरसाने आई है; अथवा उसने कवि के कष्टों को देख लिया है । इसलिए उसकी चीख निकल पड़ी है । शायद वह कवि की हथकड़ियों पर नाखुश है । कवि हथकड़ियों को अपना गहना मानता है । कोल्हू की आवाज को अपना जीवन-संगीत मानता है । जेल के कष्टों को अपना गौरव मानता है । कवि कहता है कि कोकिल समेत समस्त वातावरण अंधकार से भरा हुआ है।
कोयल हर प्रकार स्वतंत्र है एवं जन-प्रशंसित है, जबकि कवि बंदी है तथा किसी को उसकी चिंता नहीं है । कवि कोयल की आवाज पर सब कुछ करने को तैयार है । वह गाँधीजी के स्वातंत्र्य-संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार है ।

कैदी और कोकिला कविता का सारांश

क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो ? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो ?
संदेशा किसका है ?
कोकिल बोलो तो !

सारांश

कवि कोयल को सम्बोधित करता हुआ पूछता है कि वह जेल के ऊपर उड़-उड़कर बार-बार क्या गा रही है और अपने मन की कौन-सी गहरी बात कहना चाहती है जिसे बार-बार कहते-कहते वह रुक जाती हो ? कवि कहता है कि तुम मेरे लिए क्या प्रेरणा लाई हो ? यह प्रेरणा-संदेश किसका है, उसके सम्बन्ध में उसे साफ-साफ समझाओ । कवि के अनुसार, कोयल अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों से दुखी है ।कवि का दुख कोयल के बोलने के बहाने व्यक्त हो उठा है

ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना !
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

सारांश

कवि ब्रिटिश शासकों के ऐसे कारागृह की ऊँची और अँधेरी दीवारों के घेरे में कैदी है, जहाँ डाकू, चोर, राहजन आदि बुरी आदतों वाले लोगों का भी आवास है । उसे उनके बीच रहने को मजबूर होना पड़ रहा है । यहाँ जीवन काटने के लिए पेट-भर भोजन तक नहीं मिलता। जेल कर्मचारी न उसे जीने देते हैं, न मरने देते है। सरकारी गुप्तचर और सिपाही हमेशा हम पर नजर रखते हैं। चारों ओर मानो कालिमा का राज्य है। चंद्रमा भी नहीं है अतः रात भी घनी काली है । आशा और प्रेरणा के सभी केंद्र नष्ट हो चुके हैं।

क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो !
क्या लुटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो !

सारांश

कवि कोयल से कहता है कि उसके गले से वेदना से बोझिल मन की कसक से भरी बोली, क्यों निकल पड़ी ? उसने ऐसा क्या देख लिया तथा उसका क्या लुट गया ? उसका कोमल और मीठा स्वर सुनकर तो ऐसा लगता है कि उसे वसंत की मधुर छटा की रखवाली का भार मिला है । फिर वह बताए कि उसकी आवाज़ में इतना दुख क्यों है ?
कोयल की आवाज़ में दुख और वेदना की अनुभूति होने के कारण उसे ‘हूक’ कहा गया है ।

क्या हुई बावली ?
अर्द्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो !
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल बोलो तो !

सारांश

कवि कोयल से पूछता है कि वह इस तरह आधी रात को क्यों चीख रही है ? क्या वह पागल हो गई है ? क्या उसने किसी जंगल में लगने वाली आग को देख लिया है, जिसकी तपन से भयभीत होकर वह अचानक चीख पड़ी है ?
कोयल का आधी रात को जेल के आस-पास बोलना बहुत अस्वाभाविक था । उसे तो बाग-बगीचों या वनों में बोलना चाहिए था । इसी कारण कवि ने उसे ‘बावली’ कहा है ।

क्या ? – देख न सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश – राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? – जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलाने वाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली ?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह – बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !

सारांश

जेल में कवि को भयंकर कष्ट सहने पड़े। उसे हथकड़ियों में कैद करके रखा गया, कोल्हू चलाने के लिए बैल की जगह जोत दिया गया तथा उससे गिट्टियाँ तुड़वाई गईं । इस प्रकार अमानवीय कष्ट दिए गए ।
अंग्रेजों ने कवि के स्वाभिमान को झुकाने के लिए उसे अमानवीय यातनाएँ दीं। कोल्हू के बैल की जगह उसकी छाती पर जुआ बाँध दिया और कोल्हू चलवाया गया। कवि ने इन यातनाओं को गर्व के साथ सह लिया, जिससे अंग्रेजों की अकड़ ढीली हो गई ।
कवि को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान संघर्ष करते हुए जेल में जाना पड़ा ।

काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह- श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली !
इस काले संकट – सागर पर
मरने को, मदमाती !
कोकिल बोलो तो !
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो !

सारांश

कवि ने यहाँ ‘काली’ विशेषण का प्रयोग अनेक अर्थों में किया है । जैसे काली काला रंग, (कोयल का रंग, रात का रंग, टोपी, कंबल और जंजीर का रंग)
अन्यायपूर्ण (शासन की करनी, संकट-सागर)
भयानक (काली लहर, काली कल्पना, काली काल-कोठरी) की शिक
प्रस्तुत काव्यांश में ब्रिटिशकालीन जेलों में हुए घोर अन्याय और निराशा-भरे वातावरण का सजीव चित्रण किया गया है । यहाँ कोयल की आवाज़ क्रांति की आग बनकर प्रस्तुत हुई है ।कवि ने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के लिए ‘काली’ विशेषण का प्रयोग किया है ।

तुझे मिली हरियाली डाली
मुझे नसीब कोठरी काली !
तेरा नभ-भर में संचार,
मेरा दस फुट का संसार !
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी !
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ
कोकिल बोलो तो !
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ ।
कोकिल बोलो तो !

सारांश

कोयल और कवि की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है । कवि करागृह में बंदी है, जबकि कोयल खुले आकाश में उड़ने के लिए स्वतंत्र है । कवि दस फुट की तंग कोठरी में कैद है, जबकि कोयल हरी डालों पर झूम रही है । कोयल के गीतों की सभी प्रशंसा कर रहे हैं, जबकि कवि को रोने का भी अधिकार नहीं है। कवि और कोकिल में समानता यह है कि दोनों ही स्वतंत्रता से प्रेरित हैं । कोकिल अपनी करुण ध्वनि से स्वतंत्रता की ज्योति जगाना चाहती है और कवि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे सैनानियों की गाथा कविता में प्रस्तुत करके जन-जन में आजादी का दीवानापन जगाना चाहता है । कोकिल का स्वर कवि के लिए प्रेरणादायी है जिसकी हुँकार पर वह कुछ भी करने को तत्पर है ।

 

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