भारतीय धर्म-साधना में सन्त कवियों का स्थान

यह कहा जा सकता है कि सन्तकाव्य अकृत्रिम, सहज एवं गौरव का भाव से भरा हुआ है। समाज के प्रति उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील एवं क्रान्तिकारी था।सन्त कवियों ने किसी विशेष धर्म का पल्ला न पकड़कर जिस तत्व को व्यावहारिक समझा, उसे अपने काव्य में स्थान देने में संकोच नहीं किया। यही कारण है कि उनके काव्य में अनुभूति की सच्चाई एवं अभिव्यक्ति का खरापन है।

भारतीय धर्म-साधना में सन्त कवियों का स्थान

सन्तकाव्य का मूल्याकन करते हुए यह कहा जा सकता है कि वह अकृत्रिम, सहज एवं गौरव का भाव से भरा हुआ है। समाज के प्रति उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील एवं क्रान्तिकारी था।

शास्त्र प्रमाण की तुलना में आत्म गौरव को महत्व देकर सन्त कवियों ने वैचारिक क्रान्ति का सूत्रपात किया। कबीर जैसे कवि किसी भी भाषा के गौरव है। मानवता को उच्च आदर्श पर प्रतिष्ठित करने के लिए उन्होंने जो क्रान्तिकारी विचार प्रस्तुत किए वे उनकी महानता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त माने जा सकते हैं।


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सामाजिक विसंगतियों, धार्मिक विडम्बनाओं, रूढ़िवादी विचारों एवं अन्धविश्वासों का खण्डन करते हुए सन्त कवियों ने समाज को सशक्त, निर्दोष एवं कल्याणकारी मार्ग पर अग्रसर किया।

भारतीय धर्म साधना में सन्तों का महत्वपूर्ण स्थान है। जीव, ब्रह्म, जगत और माया के सम्बन्ध में उनके विचार भारतीय दर्शन की परम्परा के अनुरूप हैं। कबीर में आत्मा की विरहाकुलता आत्मा शुद्धि से सम्पृक्त हैं वे धर्म में कर्मकाण्ड को महत्व न देकर आचरण पर बल देते हैं। व्यवस्था पर उन्होंने करारी चोट की बाह्याडम्बरों का खुलकर विरोध किया।

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कबीर भले ही पढ़े-लिखे न हो पर वे बहुश्रुत अवश्य थे। उन्हें जहाँ से जो कुछ भी अच्छा लगा, उसे सहर्ष ग्रहण कर लिया। यही कारण है कि सन्त काव्य पर नाथपथियो, अद्वैतवेदान्त, वैष्णव धर्म, बौद्ध धर्म, सिद्ध सम्प्रदाय का प्रभाव परिलक्षित होता है। सन्त कवियों ने किसी विशेष धर्म का पल्ला न पकड़कर जिस तत्व को व्यावहारिक समझा, उसे अपने काव्य में स्थान देने में संकोच नहीं किया। यही कारण है कि उनके काव्य में अनुभूति की सच्चाई एवं अभिव्यक्ति का खरापन है।

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