bhaarat dharmanirapeksh desh hai | भारत धर्मनिरपेक्ष देश है

bhaarat dharmanirapeksh desh hai | भारत धर्मनिरपेक्ष देश है

Bhaarat Dharmanirapeksh Desh Hai | भारत धर्मनिरपेक्ष देश है | सरकारी तौर पर भारत में अपना कोई धर्म घोषित नहीं किया गया है। (Bhaarat Dharmanirapeksh Desh Hai) यहां सरकार किसी को भी धार्मिक स्वतंत्रता या संविधान प्रदत्त अधिकार के इस्तेमाल से रोक नहीं सकती, चाहे वह किसी भी धर्म में रहने या उसे छोड़ने का सवाल हो या किसी भी धर्म में विश्वास रखने या ना रखने का प्रश्न हो।

bhaarat dharmanirapeksh desh hai

भारत के संविधान की प्रस्तावना में (Bhaarat Dharmanirapeksh Desh Hai) भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। घोषित प्रस्तावना के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को “विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना” की पूर्ण स्वतंत्रता है।

घोषित प्रस्तावना में उपरोक्त भावना के अनुरूप धर्म की स्वतंत्रता को भारत के संविधान में मूल अधिकार का दर्जा दिया गया है, जिसका व्यख्या भाग 3 में अनुच्छेद 25 से लेकर अनुच्छेद 28 तक किया गया है।

अनुच्छेद 25

अनुच्छेद 25 के अनुसार (Bhaarat Dharmanirapeksh Desh Hai) “देश में सभी को लोक व्यवस्था, सदाचार, स्वास्थ्य और भाग 3 के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को अंत: करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक़ है”। अनुच्छेद 25 देश के सभी नागरिकों को, अपने धर्म को मानने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है जो लोक व्यवस्था, सदाचार, स्वास्थ्य और मूल अधिकारों वाले भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए है।


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अनुच्छेद 25 द्वारा प्रदत्त इस अधिकार पर राज्य निम्नलिखित प्रकार से नियंत्रण लागू कर सकता है, अर्थात –

राज्य ऐसी विधि बना सकता है जो धार्मिक आचरण से सम्बद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बन्धन करे।
सामजिक कल्याण और सुधार के लिये या सार्वजनिक प्रकार से धार्मिक संस्थाओं को सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करने वाली विधि बनाना।

अनुच्छेद 26

इस बात का भी ध्यान रहे कि धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता में बलात धर्म परिवर्तन करने या कराने का अधिकार शामिल नहीं है। लेकिन यह पूर्णता नीजी ईच्छा से किया जा सकता है। इसी प्रकार सार्वजनिक धार्मिक जुलूस आदि में घातक हथियारों, मानव खोपड़ियों आदि के साथ नृत्य, प्रदर्शन आदि के प्रदर्शन को भी उच्चतम न्यायालय ने धार्मिक आचरण का अंग नहीं माना है, क्योंकि इस प्रकार के प्रदर्शन लोक व्यवस्था और सदाचार अनुचित प्रभाव डाल सकते हैं। इसी प्रकार “बकरीद” के मौके पर गो-वध को इस्लाम की अनिवार्य प्रथा नहीं माना गया है और लोक व्यवस्था के हित में इसका, विधि द्वारा, प्रतिषेध किया जा सकता है।

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अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करता है तो अनुच्छेद 26 “धार्मिक समूह” के रूप में अपने धर्म से संबंधित कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद 26 लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक समुदाय या उसके किसी अनुभाग को अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने और धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का अधिकार देती है।

अनुच्छेद 26 में उल्लेखित “धार्मिक समूह या धार्मिक समुदाय” से तात्पर्य व्यक्तियों के ऐसे समुदाय से है जिनकी आस्थाओं की अपनी कोई पद्दति है जिन्हें वह समूह अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक मानता है, और एसे समूह का एक विशिष्ट नाम होता है।

अनुच्छेद 27

अनुच्छेद 27 किसी धर्म या धार्मिक संप्रदाय को बढ़ाने के लिए किसी प्रकार के कर को दिए जाने से छूट प्रदान करता है। इसके अनुसार “किसी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक सम्प्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किये जाते हैं।

यह अनुच्छेद करारोपण का प्रतिषेध करता है, लेकिन कोई शुल्क वसूले जाने का प्रतिषेध नहीं करता है।

अनुच्छेद 28

अनुच्छेद 28 शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने से स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसके अनुसार पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी। हालांकि इस उपबंध से उन शिक्षा संस्थाओं को छूट प्रदान की गयी है जिनका प्रशासन तो राज्य करता है किन्तु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई हैं, जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है। (Bhaarat Dharmanirapeksh Desh Hai)


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राज्य से मान्यताप्राप्त या राज्य निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को उस संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा या वहां की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जा सकता, जब तक वह व्यक्ति स्वयं उपस्थित ना होना चाहे।

अनुच्छेद 28 नैतिक शिक्षा या किसी धर्म के “शिक्षा के विषय के रूप में अध्ययन” आदि पर प्रतिबन्ध नहीं लगाता है। अनुच्छेद 28 में उल्लेखित के अनुसार किसी शिक्षा संस्था में धार्मिक शिक्षा तो नहीं दी जा सकती, किन्तु नैतिक शिक्षा दी जा सकती है और किसी धर्म या धार्मिक उपदेशकों, उनके जीवन, उनकी शिक्षाओं, उपदेशों, आदि का शैक्षणिक अध्ययन किया जा सकता है। (Bhaarat Dharmanirapeksh Desh Hai)

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