What is Syadvada | Bhagwan Mahaveer | स्यादवाद का क्या अर्थ है
What is Syadvada | स्यादवाद का क्या अर्थ है
स्यादवाद (Syadvada) का अर्थ होता है मैं भी ठीक हूं, तुम भी ठीक हो, वह भी ठीक है। सभी के अंदर कुछ ना कुछ अंश सत्य का होता है इसी स्वीकृति को स्यादवाद (Syadvada) कहते हैं।
माना जाता है कि स्यादवाद (Syadvada) के सिद्धांत को महावीर ने जन्म दिया। महावीर का मानना था कोई भी अभिव्यक्ति पूर्ण सत्य नहीं हो सकता । व्यक्ति-व्यक्ति का सत्य अलग-अलग हो सकता है , यह उस व्यक्ति के विचारों पर निर्भर करता है । महावीर का कहना था सभी सत्य की अभिव्यक्ति सत्य है , आंशिक सत्य हैं, कोई भी अभिव्यक्ति पूर्ण सत्य नहीं हो सकता महावीर के इसी सिद्धांत ने स्यादवाद को जन्म दिया।
महावीर का मानना था हम सभी व्यक्ति में थोड़ा-थोड़ा सत्य का अंश मौजूद है, हमें सभी के सत्य को देखना चाहिए । इस तरह हमें विवादी ना होकर संवादी होना चाहिए। इसका अर्थ यह भी है कि स्यादवाद अपने आप में पूर्ण सत्य नहीं है। क्योंकि अगर महावीर की माने तो कोई भी सत्य पूर्ण सत्य नहीं होता सभी सत्य एक प्रकार से आंशिक सत्य होता है।
लेकिन आज के समय में जैन समुदाय ने महावीर के विचारों पर मन्न ना करते हुए उसको पूर्ण सत्य मान लिया और यहीं से स्यादवाद जैन संप्रदाय का रूप ले लेता है अगर स्यादवाद को समझा गया होता तो जैन संप्रदाय नहीं होता क्योंकि स्यादवाद के अनुसार कोई संप्रदाय खड़ा नहीं हो सकता क्योंकि स्यादवाद का अर्थ यह है की सभी में सत्य है और किसी में भी पूर्ण सत्य नहीं है। संप्रदाय का तो मतलब यह होता है कि सत्य यहां है वहां नहीं। स्यादवाद ने तो संप्रदाय की जड़ काटी थी ,लेकिन अब जैनों का संप्रदाय स्यादवाद की रक्षा करता है। जो कि महावीर के वचनों द्वारा सदा से सुरक्षित है ।
जिस भी व्यक्ति ने महावीर के विचार अपने जीवन में उतारा होगा वह व्यक्ति कभी भी धर्म ,संप्रदाय को लेकर अपने जीवन में किसी से भी विवाद नहीं करेगा क्योंकि वह व्याक्ति इस बात को अच्छे से जानता है की धर्म को या संप्रदाय को लेकर सभी के विचारों में समान्ता सम्भव नहीं है लेकिन इसका ये मतलब नहीं की समाने वाला व्यक्ति गलत और आप सही हैं, इसका ये भी मतलब नहीं की आप गलत और सामने वाला सही है बल्कि आप दोनों के ही विचार सही और गलत दोनों हो सकते हैं ।बस हमें ये बात समझने की जरूरत है की एक-दूसरे के विचारो को सही-गलत मान लेने से केवल विवाद उत्पन्न होता हैं जबकि सदा से हमें विवाद की नहीं संवाद की आवश्कता रही है ।
किसी भी दो अलग विचारों के बीच हुआ संवाद एक नये विचार को जन्म देता है।
संवाद करना सदा से एक सेहतमंद सामाजिक परिवेश को जन्म देता है।संवाद करना रुठियों को तोड. कर एक सेहतमंद परम्परा को जन्म देता है जो कि समाज के विकास के लिए बहुत जरूरी है।
किसी भी समाज को विकासित होने के लिए उसके अंदर समय के साथ नये विचारों का आना आवश्यक है ।अगर समय के साथ समाज में नये विचारों का लोकर्पण नहीं होता तो वह समाज रूठियों से ग्रस्त हो कर बिमार होता चला जाता है जिसके कारण उस समाज की जनसत्ता भी उसी रूठिग्रस्त विचारों से ग्रस्त होती है जो की कभी भी एक सेहतमंद समाज का निर्माण नहीं कर सकते है।
किसी भी समाज के लिए इस बिमारी से बचने की एक ही दवा है और वह यह है कि उस समाज के लोगों को जो कि समाज का निर्माण करते है उन्हें अपने विचारों में विवाद ना उत्पन्न करके संवाद करना चाहिए और समय के साथ बदलते विचारों को अपन्ना चाहिए ।