साहित्य में उत्तर-आधुनिकतावाद | Saahity mein Uttar-Aadhunikataavaad

उत्तर-आधुनिकतावाद  (POST-MODERNISM)

सामान्यतः आधुनिकता का अगला चरण उत्तर आधुनिकता है, किन्तु उत्तर आधुनिकतावादी दृष्टि आधुनिकता के गर्भ से उत्पन्न होते हुए भी उसका अतिक्रमण है।

इस सम्बन्ध में विभिन्न चिन्तकों द्वारा प्रस्तुत विचारों के उपरान्त आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकतावाद के सम्बन्ध में निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-

1. आधुनिकता की अतिशयता से अस्सी के दशक में पश्चिमी समाज में वितृष्णा और नकार के भाव पनपने लगे। बौदलेयर ने ‘आधुनिकता’ पर प्रश्नचिन्ह लगा         दिया।

2. आधुनिकता और आधुनिकतावाद पर प्रश्नचिन्ह लगने के उपरान्त उत्तर-आधुनिकतावादी सोच विकसित हुई। अतः यह कहा जा सकता है कि उत्तर आधुनिकतावाद  आधुनिकता की कोख से जन्मा वह परखनली शिशु है जो गर्भस्थ होकर अपनी जननी को ही नष्ट कर रहा है।


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3. पिछले साढ़े तीन सौ वर्षों में आधुनिकता का जो विकास हुआ, उत्तर-आधुनिकता उसी चरम का प्रतिफल है, किन्तु यह निरन्तर गतिशील है, इसका कोई केन्द्रवर्ती रूप अभी नहीं बना है क्योंकि यह विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया है।

4. उत्तर-आधुनिकतावादी व्यवस्था में साहित्य, सस्कृति दर्शन, समाज और मनोविज्ञान को तर्कवादी सिद्धान्त का विखण्डन करके ही समझा जाता है।

5. आधुनिकीकरण (Modernisation) सामाजिक सम्बन्धों में न्यायसंगत अनुशासन का पक्षधर है, नीति धर्म, कर्मकाण्ड और आस्थाओं को ज्ञान-विज्ञान के आलोक में परखना तथा कला साहित्य को पूर्ववर्ती रूढ़िवादी मूल्य परम्पराओं से मुक्त कराना आधुनिकीकरण की प्रक्रिया है तथा इन सकल्पनाओं को आत्मसात करना ही आधुनिकताबोध है।

6. आधुनिकता का चरमोत्कर्ष तकनीक, प्रौद्योगिकी, सूचना विस्फोट, इलेक्ट्रोनिक मीडिया आदि के विकास में परिलक्षित हो रहा है। आधुनिकता का यही चरमोत्कर्ष उत्तर-आधुनिकता का प्रस्थान बिन्दु है। आधुनिकता की झोंक, मशीनीकरण की प्रक्रिया मानव को यन्त्र बनाए डाल रही है। इस व्यवस्था का निषेध उत्तर आधुनिकता में दिखाई देता है।

7. उपभोक्तावाद की चरम स्थिति संग्रहवाद है जिसका विरोध उत्तर आधुनिकतावादी विचारक, ‘ल्योतार’ करते हैं। उत्तर-आधुनिकता वस्तुत आधुनिकता पर किया गया ऐसा प्रहार है जो सौन्दर्य, शान्ति,उदात्त और विराट सम्बन्धी उन संकल्पनाओं ने विकसित किए थे।

8. किसी साहित्यिक कृति के निर्माण में अथवा पाठ सरचना में पूर्व निर्धारित नियमों, परम्पराओं और मूल्यांकन का निषेध उत्तर-आधुनिकता करती है। बौद्रीआ ने उत्तर-आधुनिकता पर अपने कई ग्रन्थो -कज्यूमर सोसाइटी, फेटल स्ट्रेटजीज आदि में विचार किया है।


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9. उत्तर-आधुनिकता पदबन्ध का प्रयोग सर्वप्रथम जान बार्थ ने 1967 में कला के सन्दर्भ में किया। तत्पश्चात् ल्योतार तथा फ्रेडरिक जेमसन ने उत्तर-आधुनिकता पर विचार व्यक्त कर इसका विकास किया।

10. उत्तर-आधुनिकता पूंजीवादी विकास की नवीन स्थिति है। इसे एक सामाजिक विचारधारा कह सकते हैं।

11. उत्तर-आधुनिकता महावृतान्तों (रामायण, महाभारत, बाइबिल आदि) को नकारती है. साथ ही वह मूल्य मीमांसा को भी नकारती है। इस प्रकार वह मूल्यहीनता की पक्षधर है। यह व्यक्ति केन्द्रित समीक्षा दृष्टि है जो यह मानती है कि कुछ भी सम्पूर्ण नहीं होता, अतः उत्तर आधुनिकता सम्पूर्णता (Totality) का खण्डन करती है।

12. उत्तर-आधुनिकतावादी दृष्टि में भाषा या पाठ (Text) को उसी प्रकार केन्द्र में रखा जाता है जैसे उत्तर संरचनावाद में।

13. उत्तर-आधुनिकतावादी समीक्षा में सम्मोहन की सक्रियता, परम्परावादी समीक्षा सिद्धान्तों का अतिक्रमण, सांस्कृतिक साहित्यिक कुशासन से विरक्त और श्रवणीयता के प्रति आसक्ति पाई जाती है।

14. उत्तर-आधुनिकतावाद एक ऐसी समीक्षा दृष्टि है जो स्थूल अर्थ के स्थान पर साभिप्रायता तथा अर्थ की अनेक छायाओं और प्रतिछायाओं को रेखांकित करती है।

15. उत्तर-आधुनिकतावाद फलसफा कोई एक विचारक अभी तक नहीं दे सका है। लोगों ने अपनी-अपनी दृष्टि से इसे प्रस्तुत किया है, अतः विभिन्न आलोचकों के मतों में अन्तर्विरोध भी है।

16. भारतीय साहित्य अभी उत्तर-आधुनिकतावाद से आक्रान्त नहीं हुआ है। कुछ लोगों ने मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ और उदय प्रकाश की कहानी ‘वारेन हेस्टिंग्स का सांड़’ में उत्तर- आधुनिकता की अनुगूंज सुनी है, किन्तु यह संकल्पना अभी हिन्दी में प्रवेश कर रही है। भूमण्डलीकरण और उपभोक्तावादी संस्कृति के दबाव से हम बच नहीं सकते। अत: देर-सबेर यह विचारधारा हिन्दी साहित्य में अवश्य आएगी, किन्तु इसे हम भारतीय परिवेश में ही स्वीकार करेंगे न कि पाश्चात्य विचारकों की नकल करेंगे।

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