प्यार के पहले ऐहसास पर Love Poem | 2024 Valentine Week
2024 Valentine Week special Hindi Love Romantic Shayari | Valentine week की शुरुआत हो चुकी है इस week कप्लस अपने पार्टनर या करीबी दोस्त को गुलाब देकर अपने दिल की बात कहते हैं. इस Valentine week पर अपने पार्टनर या करीबी दोस्त को गुलाब के साथ Love के खास मैसेज के साथ wish करके आप उन्हें स्पेशल फील करवा सकते हैं। इसमें आपकी मदत Janshruti website करेगा।
आज Janshruti.com पर आपके लिएि प्यार के पहले ऐहसास पर बेहतरनी Love Poem ले कर आईये है। आप इन Love Poem के जरिये अपने प्यार के पहले ऐहसास को जाहिर कर सकते है साथ ही अपने साथी को इन Love Poem के जरिये बात भी सकते है इसके अलावा Janshruti.com मौजूद Love Poem को अपने Facebook और Whatsapp पर Share भी कर सकते है।
प्यार के पहले ऐहसास पर Love Poem
पहला ऐहसास
तेरी तस्वीर को देखकर मुस्कुरान
तु भी मुझे देखकर मुस्कुराता है
ये सोच कर शर्माना
अदा थोङी नई है
पर अच्छी लग रही है
जानती हूं
रातों को जागना
बिना बात के बात करना
थोङा नया है
पर सच कहूं
कोई बात नहीं
पर बात बहुत है
दिल में जज्बात बहुत है
थे तो ये जज्बात पहले भी
पर पयमाना कभी छलका नहीं था
जो बात करने में नशा है तुम से
वो कभी हुआ नहीं था
रातों को जागना परेशान करता है
पर सच कहूं
तुम से बाते करने का मन करता है।
मोहबत की ज़िद्द
हवाओं का रूख देख तो सही, आज तेरी तरफ है
लगता है उसमें भी, तेरी खबर लेने की जदोज़हत है
खुशक़ दिन में बिखरे थे जो फूल, लगता है
आज हवाओं में उन्हें समेटने की ज़िद्द है
खुर्शीद की तपन में बिखरे थे जो ख़ियाब
आज बादलों में फिर गुलशन खिलाने की ज़िद्द है
एक बरसात से नहीं लग सकता क़ाफ़िया फूला का
फिर भी गुलशन को नहलाने की ज़िद्द है।
मोगरे की खुशबू और तुम
आह! वाह!
मोगरे की भीनी खुशबू
तुम्हारे तन से आती
तुम्हारी दिप्तमयि कान्ती
मोगरे के फूलों से नहाई
तुम महक रही हो
और मैं भॉवरे की तरह
तुम से आती
मोगरे की खुशबू से
लिपट रहा हूं
मैं मंडरा रहा हूं
तुम्हारे आंचल से
लिपट कर
मानो भॉवरा लिपटा हो
मोगरे पर
मैंने सूंघ है
मोगरा पहले भी
पर इतना मदहोश
उसकी खुशबू
कर ना पाई मुझे कभी
पर आज क्या है बात
इस मोगरे की खुशबू में
मैं इससे लिपटा चला जा रहा हूं
तुम्हारे पीछे
चलता चला जा रहा हूं
मैं उद्धविगन हो रहा हूं
एक बालक की तरह
समझ नहीं पा रहा हूं
मैं मोगरे की तरफ आर्कषित हूं
या मोगरे की खुशबू
तुम्हारे तन से आ रही है
इस बात से खींचा चला आ रहा हूं
आह! वाह!
गीतों को रस जब से मिला प्रेम का
गीतों को रस जब से मिला प्रेम का,
वो भी सजने सवरने लगी
इन्द्रधनुष से रंगों को लेकर,
धरा पे वो विचरने लगी
सूरज से लाली लेकर,
श्रृंगार वो अपना करने लगी
रातों में अगिनत तारों को
गिनने की ख्वाईश वो करने लगी
गीतों को रस जब से मिला प्रेम का,
वो भी सजने सवरने लगी ।
बेली से खुशबू चुरा कर,
महकी-महकी वो रहने लगी
महुए से रस पीकर,
बहकी-बहकी वो रहने लगी
सूनी रातों में,
चिरागों को हाथों पर रखने लगी
सोते हुए रातों में,
सेज पर करवट बदलने लगी
गीतों को रस जब से मिला प्रेम का,
वो भी सजने सवरने लगी ।
चिरागों के हवाले
चिरागों के हवाले
पयग़ाम लिख रही हूं
सेज है सूनी
पिया को बुला रही हूं
बैरन हैं ये घङियां
या बैरन हैं ये रतियां
खुद से सवाल कर रही हूं
चिरागों के हवाले
पयग़ाम लिख रही हूं
कालिख ऊतर आई
अब चिरागों में भी
काजल बना उन्हें
कजरौटे में सजा रही हूं
आंसूओं की नमी देकर
कालिख को काजल बना रही हूं
चिरागों के हवाले
पयग़ाम लिख रही हूं।
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विराह की अग्नि जले
विराह की अग्नि जले
शाम ढ़ले और मिलन की अग्न लगे
विराह की अग्नि जले
यौवन पे जैसे मधुमास चढ़ा
महुआ झर-झर साख से गिरा
ओस की बूंदे पंखुङियों पर गिरे
नरम उसकी आंहे करे
मध्म-मध्म जब गुलाब महके
तब पिया मिलन की अग्न लगे
विराह की अग्नि जले
रात जैसे खमोश
चांदनी की आगोश में बहके
रेत पर ठंडी हवा
जब आ कर रूके
धरा के शब्र का बांध
जब आश्मा को देख कर टूटे
तब पिया मिलन की अग्न लगे
विराह की अग्नि जले
भोर जब तङपता है
सितारों की छाव में
जब रात सिमट जाये
रजनी की बाहों में
चंदा जब घिर जाये तारों में
तब पिया मिलन की अग्न लगे
विराह की अग्नि जले
धरा जहां आकर सिमटे
नभ की बाहों में
नभ क्षितिज पर मिले
धरा की बाहों में
बादलों का जहां गुमान टूटे
पर्वत की गोदी में
बूंदों का जहां रूकना है
धरा की बहों में
मेरी विराह वेदना रूके
तेरी निगाहों में
विराह की अग्नि जले
शाम ढ़ले और मिलन की अग्न लगे
विराह की अग्नि जले।
मदहोश हूं मैं, अब भी
मदहोश हूं मैं, अब भी
ना जाने, खुशबू वो किसकी थी
जो सांसों से अब तक ऊतरी ही नहीं
उझलन में हूं मैं
वो खुशबू, मोगरे की थी
या तुम्हारे बालों की
मदहोश हूं मैं, अब भी
उलझन में हूं मैं, अब भी
यूं तो सूंघे हैं
मोगरे के फूल मैंने पहले भी
पर तुम्हारे बालों के साथ
उनकी खुशबू कुछ अलग थी
मैं समझ ना सका
वो खुशबू थी किसकी
मोगरे की, या की तुम्हारी
मदहोश हूं मैं, अब भी
चुप ना रहो तुम
चुप ना रहो तुम
के चुपी तुम्हारी चुभती है
दिल में पङी एक पीङ
रह-रह कर उठती है
चुप ना रहो तुम
के चुपी तुम्हारी चुभती है
तुम जो कहो तो
नभ को धरा पर झुका दूं
तुम्हारे चरणों को छू कर
उसको अशीष दिला दूं
जो नभ की बेचैनी है
उसको भी धरा से मिला दूं
धरा की अंगङाई तोङ
उसमें भी उपवन खिला दूं
तू कहे तो, तेरे प्रीत में
अपना जीवन कागज-कलम बना दूं
बस तुम चुप ना रहो
के चुपी तुम्हारी चुभती है।
तुम ने फिर अपनी बाहों में सुला लिया
अभी-अभी तो नींद से जागी थी
तुमने फिर अपनी बाहों में सुला लिया
डरती थी मैं आंख खुलने से
तुमने अपनी बाहों में मुझको छुपा लिया
सोई थी ना जानें कब से अंधेरे में
तेरी बाहों में आकर खो गई
फुरस्त से जो मिला एक लम्हा
उस लम्हे में तेरी हो गई
चांद मुझे देख गुरूर करता है
मेरा चांद उससे अच्छा है
मुछ से वो आसमा का चांद कहता है
मैं व्यथा हूं रातों की
मेरा चांद मुझको रोशन करता है
सदा अपनी बाहों में मुझको रखता है।
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शब्दों के पुल पर चलती हूं
शब्दों के पुल पर चलती हूं
मोहपाश है दिल ये तेरा
उसमें जा कर रहती हूं
शब्दों के पुल पर चलती हूं
तेरे दिल की धङकनो को
अपने दिल में रखती हूं
उसको ही सुनकर
मैं कविता को रचती हूं
मोहपाश है दिल ये तेरा
उसमें जा कर रहती हूं
शब्दों के पुल पर चलती हूं
जब तू मुझ से रूठ जाता है
तुझे मनाने को
आंसूओं की स्याही रखती हूं
तेरे पृष्ट भाग को कागज समझ
उस पर कविताओं को रचती हूं
मोहपाश है दिल ये तेरा
उसमें जा कर रहती हूं
शब्दों के पुल पर चलती हूं
जो तू खुश होकर
अंगसंग करता है
मैं तेरी अंगसेवीक बन
तेरे साथ रहती हूं
अंजुली में रखकर प्रेम अमृत
उसको खुश होकर पीती हूं
मोहपाश है दिल ये तेरा
उसमें जा कर रहती हूं
शब्दों के पुल पर चलती हूं
अति सुन्दर
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