Mahashivratri | महाशिवरात्रि का महत्व । क्यों कहे जाते हैं गृहस्थों के आदर्श गौरीशंकर


Mahashivratri | गृहस्थ जीवन के महत्व को भगवान शंकर और माँ पार्वती का मिलन समझता है। भगवान शंकर और माँ पार्वती के मिलन का कोई निश्चित समय तो नहीं पता किसी को परंतु उनके मिलन की रात को महाशिवरात्रि  (Mahashivratri) के रूप में जाना जाता है।


आज के युवा गृहस्थ जीवन को बंधन और शिकायतों के रूप में समझते है, उन्हें गृहस्थ जीवन के वास्तविक महत्व को जाने की आवश्कता है ।

Mahashivratri | गृहस्थ जीवन के महत्व को भगवान शंकर और माँ पार्वती का मिलन समझता है। भगवान शंकर और माँ पार्वती के मिलन का कोई निश्चित समय तो नहीं पता किसी को परंतु उनके मिलन की रात को महाशिवरात्रि  (Mahashivratri) के रूप में जाना जाता है।

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महाशिवरात्रि को सृजन के पर्व के रूप में जाना जाता है। ये पर्व पुरूष और प्राकृति के मिलन का पर्व है। भगवान शिव जो आदि,अनादि, अजन्मे और आयोनिज होकर स्वयंभू है। देवी  पार्वती आध शक्ति उनकी अर्द्धांगिनी है।
भगवान शिव ने एक पुरूष के जीवन में स्त्री के वास्तविक स्थान को समझाया है।

योगी से गृहस्थ बने शिव

संसार में जीवन की महिमा और गृहस्थ का महत्व समझाने के लिए भगवान शिव योगी से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते है।
हमारे वेद और शास्त्रों में गृहस्थ जीवन को तपस्या कहा गया है और विवाह की महत्व को बताते हुऐ कहा गया है कि विवाह केवल दो शरीर का मिलन नहीं अपितु ये दो आत्माओं का मिलन है, यह एक वनच है जिसका पालन हमें जीवन भर करना होता है।

तप और त्याग

देवी पार्वती का एक नाम उमा भी है जिसका संस्कृत अर्थ है ‘अरी! तपस्या मत कर’। उन्हें तपस्या से रोकने के लिए उनकी माँ उन्हें उमा कहती थी परन्तु उन्होंने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए सारे राजसी सुख का त्याग कर तपस्या करने लगी और शिव के साथ उन्होंने गुफा में भी रहना स्वीकार किया।
इससे देवी पार्वती सिखाती है कि असल सुख भौतिक संसाधनों में नहीं दाम्पत्य की मधुरता में है। परस्पर त्याग और तप से ही यह पलता फूलता है।


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दाम्पत्य का सत्संग

भगवान  शिव और पार्वती के दाम्पत्य के सबसे बङी विशेषता उनका संतोष बिना किसी अभिलाषा के प्रेम है। भगवान शंकर को आशुतोष भी कहा जाता है क्योंकि वो बहुत थोङे से प्रसन्न हो जाते है। उन्हें प्रेम भाव से जो भी अर्पण किया जाता है उसमें वो प्रसन्न हो जाते है ।

भगवान शिव का वयक्तित्व

बहुत से जन भगवान शिव के व्यक्तित्व को देख कर बहुत अचम्भित होते है, उनके शिश पर जटाओं का मुकुट गले में सृप की माला, अंग पर भस्म और बाघ के छाल के वस्त्र ,कांटेदार फूल-पत्तियों का भोग। ये सभी जीवन की जटिलताओं को दर्शतें है, भगवान शिव जीवन की जटिलताओं को स्वीकारते है और इन्हें अपना श्रृंगार भी बना लेते है। वे सिखाते हैं उलझनों और गृहस्थ के दबाव से हमें घबराना नहीं चाहिए । जो गृहस्थ इनके दबाव में न आकर इनका उपयोग करने की कला सीख जाता है, उसी की गृहस्थी मंगलमय हो पाती है।

Janshruti & Team | Nisha nik”ख्याति’

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