भवानी प्रसाद मिश्र की कविता “उठो” | kavita “Uatho”| Bhavani Parshad Mishr

आज हम पढ़ रहे है लेखक भवानी प्रसाद मिश्र की प्रसिद्ध कविता “उठो” का मूल पाठ , व्याख्या तथा सारांश| कविता “उठो” ; भवानी प्रसाद मिश्र

कविता “उठो” की व्याख्या एवं सारांश

भवानी प्रसाद मिश्र ने उठो कविता में लोगों को जागृत करने का काम किया है। इस कविता के जरिए कवि लोगों को कहना चाहते हैं कि जो बीत गया ,उसे सोचते रहने में या जो हर आपको मिली है, उसके बारे में सोचते रहने में, उसे अलापते रहने में , बार-बार उसकी याद करने में क्या रखा है । उसे भूलो और फिर से उठो । जो भी आपकी कठिनाइयां आपके आगे आ रही है , उसे चीरते हुए उसे पार करते हुए आगे बढ़ो और अपने सपनों को फिर से पाओ फिर से अपने सफ़र की तरफ चलो।

कविता “उठो” ; मूल पाठ

बुरी बात है
चुप मसान में बैठे-बैठे
दुःख सोचना, दर्द सोचना !
शक्तिहीन कमज़ोर तुच्छ को
हाज़िर नाज़िर रखकर
सपने बुरे देखना !
टूटी हुई बीन को लिपटाकर छाती से
राग उदासी के अलापना !

बुरी बात है !
उठो, पांव रक्खो रकाब पर
जंगल-जंगल नद्दी-नाले कूद-फांद कर
धरती रौंदो !
जैसे भादों की रातों में बिजली कौंधे,
ऐसे कौंधो ।

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