aadikaal ya veeragaatha kaal | आदिकाल या वीरगाथा काल की विशेषता

aadikaal ya veeragaatha kaal kee visheshat | आदिकाल या वीरगाथा काल की विशेषता,

आदिकाल या वीरगाथा सामाजिक दृष्टि से दीनहीन, राजनितिक दृष्टि से पतनोन्मुख तथा धार्मिक दृष्टि से बहुत ही ज्यादा असंतुलित था। (aadikaal ya veeragaatha kaal) आदिकाल या वीरगाथा की निम्नलिखित सहित्य विशेषताएँ हैं-

आश्रयदाताओं की प्रशंसा करना

(aadikaal ya veeragaatha kaal)  इस काल के कवियों ने अपनी रचनाओं के द्वारा अपने-अपने आश्रयदाताओं की बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा करी है। अपने आश्रयदाताओं को ऊँचा दिखाने के लिए विरोधियों को नीचा दिखाने में भी इस समय के कवि नहीं चूके हैं। स्वर्ण मुद्रा के लोभ में इन कवियों अपने आश्रयदाताओं को पराजित, कायर ना दिखाते हुए, उनका झूठा यशगान किया है परिणम स्वरूप इस काल का साहित्य स्तुतिगान का साहित्य प्रतित होता है।

ऐतिहासिकता की अवहेलना

(aadikaal ya veeragaatha kaal) आदिकाल या वीरगाथा में पूर्णता ऐतिहासिकता की अवहेलना हुई है। इन रचनाओं में इतिहास प्रसिद्ध चरित्र नायकों को लिया गया है लेकिन उनका वर्णन ऐतिहासिक नहीं है। इन रचनाओं की कार्य-कलाप की तिथियाँ इतिहास से मेल नहीं खाती। इन रचनाओं में इतिहास की अपेक्षा कल्पना की प्रधानता पाई जाती है। इसमें कवियों ने कल्पना और अतिरंजना का सम्रिश्रण किया है।

aadikaal ya veeragaatha kaal kee visheshat

संदिग्ध प्रमाणिकता

(aadikaal ya veeragaatha kaal) आदिकाल या वीरगाथा काल की रचनाओं की प्रमाणिकता संदिग्ध है। भाषाशैली और विषयवस्तु की दृष्टि से इन रचनाओं में व्यापक परिवर्तन प्राप्त होता है। इन रचनाओं के वर्तमान स्वरुप संदिग्ध समझ आते है।

वीरता का वर्णन

इन ग्रंथों का मुख्य विषय वीरता और युध्यों का वर्णन रहा है। इन रचनाओं में किये गये युध्य वर्णन अत्यंत सजीव है, क्योंकि इस काल के कवि राजाओं के साथ युद्ध भूमि में एक सैनिक की तरह भाग लेते थे।

राष्ट्रीयता का पूर्ण अभाव

(aadikaal ya veeragaatha kaal) आदिकाल या वीरगाथा काल की रचनाओं में राष्ट्रीयता का पूर्ण अभाव है। इस काल के कवियों के लिए उनके आश्रयदाता ही उनके एक मात्र राष्ट्रभक्ति के प्रमाण थे। देश समांतो तथा प्रंतों में बटा हुआ था। राजाओं ने उन्हें ही अपना राष्ट्र समझ रखा था यह देश का दुर्भाग्य था। इस तरहा राजाओं का आपसी संघर्ष राष्ट्रीयता के अभाव का को दर्शाता है।

वीर तथा श्रृंगार रस

(aadikaal ya veeragaatha kaal) आदिकाल में लिखि गई गाथाओं में वीर तथा श्रृंगार रस का अच्छा समनव्य दिखाई पड़ता है। उस समय हर किसी में युध्य का उत्साह था। उस समय जन-जन के बीच प्रचलित था-“बारह बरस लौ कूकर जीवै, अरु सोरह लौ जियै सियार। बरस अठारह क्षत्री जीवै, आगे जीवै को धिक्कार॥

इन कालों में युद्धों का कारण प्रायः सुंदरियाँ होती थी। यही कारण है कि इस काल की रचनाओं में उनका नख – सिख वर्णन करके राजाओं के मन में प्रेम जगाया जाता था। मुख्यता इस काल का श्रृंगार वासना से ऊपर नहीं उठ पाया था।

सामाजिक चित्रण का अभाव

उस समय के चारण कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की झूठी प्रशंसा में सामाजिक जीवन के प्रति निरस्ता दिखाया था।

मुक्तक तथा प्रबंध काव्य

आदिकाल या वीरगाथा काल में मुक्तक तथा प्रबंध दोनों प्रकार की रचनाएँ लिखी गई है। जैन साहित्य में चरित्र साहित्य ,पुराण साहित्य ,राम काव्य ,कृष्ण काव्य ,रोमांटिक काव्य अधिक मिलते हैं। इस काल के लोक साहित्य गीति शैली में लिखे गए हैं।

काव्य में विविध छंदों के प्रयोग

आदिकाल छंदों की विविधता के लिए सर्वोपरि है। इस काल के प्रसिद्ध छंद हैं, दोहा, रोला, तोटक, तोमर, गाथा ,आर्या। ये सभी छंद प्रयोग चमत्कार प्रदर्शन से युक्त हैं।

डिंगल भाषा का प्रयोग

aadikaal ya veeragaatha kaal kee visheshat

आदिकाल काल की मुख्य भाषा डिंगल भाषा थी। कुछ लोग डिंगल भाषा को अपभ्रंश भाषा कहते हैं। जैन साहित्य की रचना पश्चिमी अपभ्रंश और सिद्ध साहित्य की रचना पूर्वी अपभ्रंश में हुई है। वीररस के काव्य डिंगल-पिंगल में लिखे गए हैं, जबकि लौकिक काव्य पिंगल और खड़ीबोली की ओर उन्मुख हैं।

अंतर्विरोध ,मतभेद और विभिन्नताओं का काल

(aadikaal ya veeragaatha kaal) आदिकाल अंतर्विरोध ,मतभेद और विभिन्नताओं का काल हुआ है। इस काल में पूर्व और पश्चिम का भेद पाया गया हैं। पश्चिम का साहित्य रूढिगत हैं जिसमें राजाओं की झूठी प्रशंसा है ,श्रृंगारिकता रचनाओं में बोली गयी हैं और मिथ्या नैतिकता का प्रचार किया गया हैं। पूर्व का साहित्य इसके विपरीत हैं, जिनमें रुढियों का विरोध हैं ,ब्राह्मणवाद और जातिवाद पर प्रहार किया गया है। इस काल के एक ही कवि के एक ही काव्य में अंतर्विरोध देखा जा सकता हैं जैसे विद्यापति शैव भी हैं और वैष्णव भी वह श्रृंगारिक कवि होने के साथ भक्ति की रचनाएँ भी लिखते हैं।


Also Read:- Aadikaal Ke Upanaam, Hindi Saahity | आदिकाल के उपनाम, हिन्दी साहित्य


रासो शैली

(aadikaal ya veeragaatha kaal) आदिकाल के काव्य रासक शैली में पाये जाते है। रासक गेय रूपक को कहते हैं, इन्हें लय ताल के अनुसार नाच नाच कर गाया जाता हैं। इस शैली में लिखी गई रचनाओं को प्र्श्नोनोत्तर या दो व्यक्तियों के वार्तालाप में लिखा जाता हैं। सन्देश रासक, पृथ्वीराज रासो ,कीर्तिलता ,बाही बलिराम आदि रचनाओं में इसी शैली का प्रयोग किया गया है। इस काल के रचना ग्रंथों में रसों शब्दों जुड़ा मिलता है।

प्रकृति चित्रण पाया जाता है

इस काल में आलंबन और उद्दीपन दोनों रूपों में प्रकृति चित्रण पाया जाता है। पर्वतों ,नगरों , नदियों ,प्रभात ,संध्या आदि का इन रचनाओं में सुन्दर चित्रण मिलता हैं। इन चित्रों में स्वाभाविकता का प्रायः हर जगह अभाव देखा जा सकता है।

One thought on “aadikaal ya veeragaatha kaal | आदिकाल या वीरगाथा काल की विशेषता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *