बाल श्रमिक और शोषण / बाल श्रम से जूझता बचपन, हिंदी निबंध | Baal Shramik Aur Shoshan / Baal Shram Se Joojhata Bachapan Hindi Nibandh
बाल श्रमिक और शोषण / बाल श्रम से जूझता बचपन
किसी भी देश में बाल श्रमिको का होना उस देश के लिए शर्म की बात है और साथ ही उसके विकास पर प्रश्न चिन्ह भी है।
बाल श्रमिक और शोषण / बाल श्रम से जूझता बचपन इस निबंध में हम निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत बात करेंगे –
बाल श्रमिक कौन होते है
बाल श्रमिक की दिनचर्या
गृहस्वामियों व उद्यमियों द्वारा उनका शोषण
बाल श्रमिक के सुधार हेतु सामाजिक एवं कानूनी प्रयास ।
बाल श्रमिक कौन होते है –
इसके अंतर्गत 14 वर्ष से कम आयु के मजदूरी या उद्योगों में काम करने वाले बालक आते हैं। खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र में मेहनत-मजदूरी की चक्की में पिसता देश का बचपन समाज की सोच पर एक कलंक है। दायों, कारखानों और घरों में अत्यन्त दयनीय स्थितियों में काम करने वाले ये बाल श्रमिक देश की तथाकथित प्रगति के गाल पर एक तमाचा है। इनकी संख्या लाखों में है।
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बाल श्रमिक की दिनचर्या
इन बाल श्रमिकों की दिनचर्या पूरी तरह इनके मालिकों या नियोजकों पर निर्भर होती है। गर्मी हो, वर्षा या शीत इनको सबेरे जल्दी उठकर काम पर जाना होता है। इनको भोजन साथ ले जाना पड़ता है। या फिर मालिकों की दया पर निर्भर रहना पड़ता है। इनके काम के घंटे नियत नहीं होते। बारह से चौदह घण्टे तक भी काम करना पड़ता है। कुछ तो चौबीस घण्टे के बंधुआ मजदूर होते हैं। बीमारी या किसी अन्य कारण से अनुपस्थित होने पर इनसे कठोर व्यवहार यहाँ तक कि निर्मम पिटाई भी होती है।
गृहस्वामियों व उद्यमियों द्वारा शोषण
घरों में या कारखानों में काम करने वाले इन बालकों का तरह-तरह से शोषण होता है। इनको बहुत कम वेतन दिया जाता है। काम के घण्टे नियत नहीं होते। बीमार होने या अन्य कारण से अनुपस्थित होने पर वेतन काट लिया जाता है। इनकी कार्य-स्थल पर बड़ी दयनीय दशा होती है। सोने और खाने को कोई व्यवस्था नहीं होती है। नंगी भूमि पर खुले आसमान या कहीं कोने में सोने को मजबूर होते हैं। रूखा-सूखा या झूठन खाने को दी जाती है। बात-बात पर डाँट-फटकार, पिटाई, काम से निकाल देना तो रोज की कहानी है। यदि दुर्भाग्य से कोई नुकसान हो गया तो पिटाई या वेतन काट लेना आदि साधारण बातें हैं। वयस्क मजदूरों की तो यूनियनें हैं जिनके द्वारा वह अन्याय और अत्याचार का विरोध कर पाते हैं किन्तु इन बेचारों की सुनने वाला कोई नहीं। केवल इतना ही नहीं मालिकों और दलालों द्वारा इनका शारीरिक शोषण भी होता है।
सुधार हेतु सामाजिक एवं कानूनी प्रयास
बाल श्रमिकों की समस्या बहुत पुरानी है। इसके पीछे गरीबी के साथ ही माँ-बाप का लोभ और पारिवारिक परिस्थिति कारण होती है। इस समस्या से निपटने के लिए सामाजिक और शासन के स्तर पर प्रयास आवश्यक है। सामाजिक स्तर पर माँ-बाप को बालकों को शिक्षित बनाने के लिए समझाया जाना आवश्यक है। इस दिशा में स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। सरकारी स्तर पर बाल क्रय रोकने को कठोर कानून बनाए गए हैं। लेकिन उनका परिपालन भी सही ढंग से होना आवश्यक है। विद्यालयों में पोषाहार एवं छात्रवृत्ति आदि की सुविधाएँ दिया जाना, बाल श्रमिकों के माता-पिता की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाना आदि प्रयासों से यह समस्या
के सुधार की तरफ एक प्रयास है परन्तु इस समस्या को समाप्त करने के लिए सरकार को और अधिक कदम उठाने की आवश्कता है ।
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