सुख और दुःख | Happiness & Sadness
जब हम में से किसी से भी पूछा जाता है, की हमें जीवन में सुख चाहिए या दुःख, हम सभी का एक ही विचार होता है, और वो ये की अपने जीवन में भला दुःख किसे चाहिए कौन दुःख की मांग करता है अपने जीवन में,पर क्या कभी हम ये विचार करते है की हर इंसान संसार में दुःखी मानता है खुद को क्यों ? क्या करण है भला की जिसके पास धन है सम्पन्न है, और जिसके पास धन नही है सम्पन्न नहीं है वो दोनों प्रकार के जन दुःखी है, फिर भला इस संसार में सुख किसके पास है, कौन है सुखी, ये सवाल आप सभी को थोङा अजीब लग रहा होगा, परन्तु ये सत्य है की हम सब जानना चाहते है की सुख कहाँ है?
- सुख की वास्त्विकता को जानने के लिए हमें ये जानना होगा की दुःख कहा से आता है?
- हम दुःखी क्यों होते है?
- क्या करण है की हमारे पास बहुत से लोगो से ज्यादा है फिर भी हम दुःखी होते है क्यों?
चलिए इस बात को हम एक उदाहरण से समझते है; मान लिजिए एक व्यक्ति जिसे दूध बहुत पसन्द है , और दूध एक पौष्टिक आहार भी है , उस व्यक्ति को हर रोज तीनों पहर दिया अब केवल दूध ही दिया जाता है, ऐसा होने से कुछ समय तो उस व्यक्ति को बहुत खुशी मिलती है परन्तु समय बीतने के साथ-साथ उसका सुख उसके दुःख में बदलता जाता है, ऐसा क्यों? जबकि दूध तो अभी वही फिर क्यों जो कल तक उस व्यक्ति को पसन्द था आज नहीं, इसका जबाब है ”बदलाव” हमारा जीवन बदलाव के नियम पर कार्य करता है,ये हम जानते है परन्तु हम ये नहीं जानते की हम सुख का आभास जब होता है जब वो हमें दुःख के पश्चात मिले, अब कुछ लोग कहेंगे की सुखी रहने के लिए क्या फिर दुःखी होना आवश्यक है? नहीं सुखी रहने के लिए दुःखी होना आवश्यक नहीं क्योंकि संसार हमेशा बदलाव के नियम पर कार्य करता ये समझ कर हमे संतोष करना आवश्यक है, और अपने जीवन में ये जानना की समय है जो हमेशा बीतता जाता है चाहे अच्छा हो या बुरा इसलिए सुख है क्योंकि दुःख का अस्तित्व है