भवानी प्रसाद मिश्र की कविता अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,| Kavita ‘ Akkadh-makkadh| Bhavani Parshad Mishr

आज हम पढ़ रहे है लेखक भवानी प्रसाद मिश्र की प्रसिद्ध कविता “अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़” का मूल पाठ , व्याख्या तथा सारांश| कविता “अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़” ; भवानी प्रसाद मिश्र

कविता “अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़” की व्याख्या एवं सारांश

अक्कड़, मक्कड़ कविता में भवानी प्रसाद मिश्र ने इस कविता के जरिए मूर्ख व्यक्ति के प्रवृत्ति के बारे में बताया है , कि किस तरह दो मूर्ख अक्कड़ और मक्कड़ लड़ते रहते हैं, बिना किसी वजह के और अपने जीवन के सारे बाल को इसी लड़ाई में खत्म करते हैं । अक्कड़, मक्कड़ को लड़ते देखकर भीड़ इस लड़ाई को छुड़ाने की बजाय आपस में तमाशा देखती रहती है । लेकिन भीड़ में से एक पक्कड़ नाम का व्यक्ति निकलता है और वह जाकर अक्कड़ मक्कड़ की लड़ाई को छूड़ता है और उनके बीच आपस में सुलह करवाता है ,उन्हें समझाता है कि इस तरह से तुम आपस में लड़कर अपना ही नुकसान कर रहे हो ।

कविता “अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़” ; मूल पाठ

अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,
हाट से लौटे, ठाट से लौटे
एक साथ एक बाट से लौटे ।

बात बात में बात ठन गई,
बांह उठी और मूछ तन गई,
इसने उसकी गर्दन भींची
उसने इसकी दाढ़ी खींची ।

अब वह जीता, अब यह जीता
दोनों का बन चला फजीता,
लोग तमाशाई जो ठहरे
सबके खिले हुए थे चेहरे !

मगर एक कोई था फक्कड़,
मन का राजम कर्रा-कक्कड़,
बढ़ा भीड़ को चीर-चार कर
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर ।

अक्कड़ मक्कड़ धुल में धक्कड़
दोनों मूरख दोनों अक्कड़,
गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,
सही बात पर झुकना पड़ा ।

उसने कहा, सही वाणी में
डूबो चुल्लू-भर पानी में,
ताकत लड़ने में मत खोओ
चलो भाई-चारे को बोओ ।

खाली सब मैदान पड़ा है,
आफत का शैतान खड़ा है,
ताकत ऐसे ही मत खोओ
चलो भाई-चारे को बोओ ।

सूनी मूर्खों ने जब बानी,
दोनों जैसे पानी-पानी,
लड़ना छोड़ा अलग हट गए
लोग शर्म से गले, छंट गए ।

सबको नाहक लड़ना अखरा,
ताकत भूल गई सब नखरा,
गले मिले तब अक्कड़ मक्कड़
ख़त्म हो गया धूल में धक्कड़ ।

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