आंचलिक उपन्यास के मूल तत्त्व तथा हिन्दी के आंचलिक उपन्यासकार
आंचलिक उपन्यास में क्षेत्र विशेष को समग्रता से देखने का आग्रह तथा सास्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा के प्रति आग्रह,लोक भाषा का प्रयोग होता है।
आंचलिक उपन्यास के मूल तत्त्व
सन पचास से साठ के दशक में हिन्दी उपन्यास का एक नया रूप हमारे जमाने आया जिसे ‘आंचलिक उपन्यास’ कहा गया। उपन्यास को आचलिक कहने तथा उसकी महत्ता की ओर आलोचकों का ध्यान आकृष्ट करने का श्रेये सुप्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ को जाता है। उन्होंने 1954 में प्रकाशित अपने उपन्यास ‘मैला आंचल’ को आंचलिक उपन्यास की संज्ञा प्रदान करते हुए इसकी भूमिका में लिखा, “यह है मैला आंचल, एक आंचलिक उपन्यास, कथानक है पूर्णिया, मैंने इसके एक हिस्से के एक गांव को पिछड़े गांव का प्रतीक मानकर इस उपन्यास का कथा क्षेत्र बनाया है।”
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अग्रेजी में ऐसे उपन्यासों को ‘Wessex Novels’ कहा गया जिनमें क्षेत्रीय रंग अर्थात् ‘Regional touch’ था। ऐसे उपन्यासों में लेखक का ध्यान उस स्थान विशेष की संस्कृति, भाषा-बोली रीति-रिवाज, रहन-सहन, लोकजीवन, धार्मिक विश्वास आदि के चित्रण में अधिक रमता था। आंचलिक उपन्यासों में भी लेखक की दृष्टि आंचलिकता पर केन्द्रित रहती है। उसमें क्षेत्र विशेष की सस्कृति का चित्रण होता है, वहां की बोली-भाषा में प्रयुक्त शब्दों का उपयोग किया जाता है और लोकसंस्कृति, लोकजीवन, रहन-सहन, वेशभूषा, अंधविश्वास त्योहार-पर्व तथा राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का चित्रण प्रमुखता से होता है।
आचलिक उपन्यास के मूल तत्व इस प्रकार हैं-
1. अंचल विशेष की भौगोलिक स्थिति का तथ्यपरक चित्रण,
2. कथानक का आचलिक आधार,
3. अंचल की लोक संस्कृति का निरूपण,
4. आंचलिक भाषा में प्रयुक्त होने वाली शब्दावली का प्रयोग,
5. अंचल की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का निरूपण ।
हिन्दी के प्रमुख आचलिक उपन्यासकार एवं उनकी आचलिक रचनाओं के नाम इस प्रकार है-
1. फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ – मैला आंचल, परती परिकथा।
2. नागार्जुन – बलचनमा, वरुण के बेटे, रतिनाथ की चाची,नई पौध, दुखमोचन
3. रागेय राघव – कब तक पुकारू, काका
4. देवेन्द्र सत्यार्थी – रथ के पहिए
5. उदय शकर भट्ट – शेष-अशेष, सागर लहरे और मनुष्य, लोक परलोक
6. शिव प्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ – बहती गंगा
7. रामदरश मिश्र – पानी के प्राचीर
8. शैलेश मटियानी – होल्दार
9. अमृतलाल नागर – सेठ बाकेमल
10. बलभद्र ठाकुर – आदित्यनाथ
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आंचलिक उपन्यास केवल ग्रामीण अंचल से ही सम्बन्धित नहीं होते अपितु नगर जीवन में सम्बन्धित भी हो सकते हैं। शिव प्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ का ‘बहती गंगा’ ‘काशी’ नगरी के जीवन को चित्रित करता है। जबकि उदय शंकर भट्ट का ‘सागर लहरें और मनुष्य’ बम्बई के ‘बरसोवा’ क्षेत्र के मछुआरों की कथा है। वस्तुतः आंचलिक उपन्यास में क्षेत्र विशेष को समग्रता से देखने का आग्रह रहता है। आचलिकता में सास्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा के प्रति आग्रह है, लोक भाषा का प्रयोग है। एक अन्य विशेषता जो आचलिक उपन्यास की बताई गई है- वह है इनमें परम्परागत नायक का अभाद। वस्तुतः इनमें अंचल विशेष ही नायक के रूप में उभरता है।